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इस डर से किनारे पे उतर जाना था

6 नवम्बर 2022

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रचनाएँ
"फिज़ा" एक गज़ल
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यह एक ग़ज़ल संग्रह है जिसमे में काफ़ी छोटी उम्र में मोहब्बत के मोहल्ले से गुजरते हुए शाइर ने कुछ कहने का प्रयास किया है, गजले है 11 - 12 कक्षा में मोहब्बत के आंगन में खिलती हुई नई कलियों की, तिलियो की, भॅंवरो की, जो की अब इस समय संसार में जीवन व्यापन हेतु धन एकत्रित करने की इक्शा से अलग-अलग शहरो में संघर्ष रत है, फूल अपनी तितलियों से दूर है, तितलियां अपने फूलो से, परंतु यह वेदना जन्म दे रही है संवेदना को, शायरी को। पढ़िए नई उम्र के दिल को , सुझाव दीजिए, आशीर्वाद दीजिए 🙏🏻🙏🏻 धन्यवाद।
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तिश्नगी यूॅं आस में बुझती हुई है

4 नवम्बर 2022
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तिश्नगी यूॅं आस में बुझती हुई है इक नदी जो गाॅंव की सूखी हुई है तेल से ऑंखें बदन नहला रहीं हैं आग मेरे पास में बैठी हुई है

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क्या और चाहिए मेरी जान के सिवा

4 नवम्बर 2022
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क्या और चाहिए मेरी जान के सिवा सब कुछ पड़ा हुआ गिरवी जान के सिवा दिल है मेरा किसी का पहले ही और तुम क्या माँस का करोगी भी जान के सिवा

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याद कर रोए एक आध दुख-दर्द हम

5 नवम्बर 2022
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याद कर रोए एक आध दुख-दर्द हम टूट कर गिर गईं डालियाँ वर्द हम रात भर चुभती इक जिस्म की रौशनी ओढ़ कर सो गए एक हम-दर्द हम कैसे जी पाएगा दिल हमारा कहीं है मोहब्बत सबा जिस के पर्वर्द हम

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इस डर से किनारे पे उतर जाना था

6 नवम्बर 2022
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इस डर से किनारे पे उतर जाना था क़िस्मत में लिखा डूब के मर जाना था दीवानगी ले डूबी हमें दुख है ये उस नाव से औरों को भी घर जाना था हम एक मुसाफ़िर थे यहाँ धरती पर घर थोड़ी बनाना था गुज़र जाना था

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हाथ पर वो हाथ रखना आपका

6 नवम्बर 2022
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हाथ पर वो हाथ रखना आपका और ऊपर से दुपट्टा आपका बाल खुल जाना अचानक आपके मारने का है इरादा आपका आपको ही लोग देखेंगे न सब ख़ूबसूरत जो है चहरा आपका हर गली में हैं यहाॅं घर आपके शहर पूरा है मुहल्ला आपका

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कुछ फॅंसा देखने जाल में लग गया

8 नवम्बर 2022
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कुछ फॅंसा देखने जाल में लग गया डंक़ इक मखमली खाल में लग गया रात में मोम बत्ती बुझाते हुए मोम सा एक बदन गाल में लग गया

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एक हॅंसी नाम जोड़े जा रहे हैं

9 नवम्बर 2022
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एक हॅंसी नाम जोड़े जा रहे हैं हम भी आहिस्ता से छोड़े़ जा रहे हैं ये भी आख़िर कैसी मोहब्बत है जानाॅं लोग हैं के फूल तोड़े जा रहे हैं थी मुझे उससे मोहब्बत जानती थी और हम पागल से दौड़े जा रहे हैं

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बिना मय के शराबी भी रहे थे हम

9 नवम्बर 2022
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बिना मय के शराबी भी रहे थे हम ये आख़िर कौन सी मय पी रहे थे हम तुम्हे ये जान कर हैरानी तो होगी बिना कैसे तुम्हारे जी रहे थे हम थे इतने तेज प्यासे करते भी तो क्या अभी तक प्यार में ही पी रहे थे

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जब तेरी बात आती है

9 नवम्बर 2022
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जब तेरी बात आती है बस तेरी याद आती है मुझ से कुछ भी नहीं आता बस तेरी बात आती है कौन ये बात मानेगा दिन में भी रात आती है मैने दिल खोल के देखा और तू हाथ आती है

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उस ने फिर से कसम अपनी भी तोड़ दी

9 नवम्बर 2022
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उसने फिर से कसम अपनी भी तोड़ दी उसने सच्ची कसम खानी ही छोड़ दी सब ने सब के दिलों की तो की, होड़ की सब ने अपने दिलों की सुनी छोड़ दी हाथ उसने मिलाया हमें फिर से जब उसने उँगली ‌भी फिर से वही मोड़ दी

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मांगते है जो नही पाते हैं

9 नवम्बर 2022
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मांगते हैं जो नहीं पाते हैं जान अपना वो नहीं पाते हैं जान खोने से क्या डरना आख़िर अपना जो है खो नहीं पाते हैं

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ढल गया हुस्न-ए-बारात अब

18 नवम्बर 2022
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ढल गया हुस्न-ए-बारात अब पूछे कौन उसके हालात अब हम ही थे क्या असल उसके मलता ना रह गया हाथ अब

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किल्लत-ए-पानी जानी बहुत

25 नवम्बर 2022
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किल्लत-ए-पानी 'जानी' बहुत ऑंखफिर भी न मानी बहुत बोलती तो नहींं वो भी कुछ कहती है जानी यानी बहुत

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तुझको देखे ही सब फीका हो जाता है

17 अप्रैल 2024
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तुझको देखे ही सब फीक़ा हो जाता हैतेरे बोसो से मीठा तीखा हो जाता हैतेरे होठों को हम मैला क्यों करते हैहमको भी आख़िर ऐसा क्या हो जाता हैमोहब्बत के चौराहे से जो गुज़रता हैकुछ ना होता बस पागल सा हो जाता

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छत पे फिर रौशनी सी दिखी

18 अप्रैल 2024
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छत पे फिर रौशनी सी दिखी चाँद के घर में खिड़की दिखी

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गज़ल कहते थे दसवी क्लास में

24 अप्रैल 2024
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ग़ज़ल 33, शाइरी करना कोई आसां नही

24 अप्रैल 2024
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शाइरी करना कोई आसां नहीं कौन है वो जो यहाँ रुसवा नहीं

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ग़ज़ल 34, लड़की वो अक्सर ही ऐसा करती है

1 मई 2024
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लड़की वो अक्सर ही ऐसा करती है गुल पसंदीदा ही तोड़ा करती है

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ग़ज़ल 35, जिंदगी भी जाने किधर गई

1 मई 2024
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हम इधर गए वो उधर गई जिंदगी भी जाने किधर गई

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ग़ज़ल 36, हम भी शायद उसी की तरफ देखते

1 मई 2024
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हम भी शायद उसी की तरफ देखते सूखते फूल जिसकी तरफ देखते जब हमारी तरफ कोई नही देखता हम वही हैं जो तेरी तरफ देखते

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ग़ज़ल 37, हम ये कैसे सीधे साधे हो रहे हैं

5 मई 2024
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हम मोहब्बत को तो प्यारे हो रहे हैं हम ये कैसे सीधे साधे हो रहे हैं वो हमे भी मार डालेगा कभी तो हम भरोसे जिसके सारे हो रहे हैं

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ग़ज़ल,38 उन सूरज सी बाहों में जो सोता होगा

9 मई 2024
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उन सूरज सी बाहों में जो सोता होगा भगवन जाने फिर उसका क्या होता होगा उसके छूने से दिल जोरो से चलता है उस आँगन के फूलो का क्या होता होगा

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गज़ल 39, हमारा दिल अगर ना कापता होगा

9 मई 2024
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हमारा दिल अगर ना कापता होगा हमारा फिर न तुझसे राब्ता होगा

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ग़ज़ल 40, होश तुझको भी रहता नहीं है

13 मई 2024
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होश तुझको भी रहता नहीं है यार तू भी तो पीता नहीं है दूर हमसे वो रहता तो है पर दूर हमसे वो रहता नहीं है

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ग़ज़ल 41, दाॅंव पे सब लगाया है मैने

17 मई 2024
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दाॅंव पे सब लगाया है मैने यानी की कुछ मुनाफा है मैने दिल लगाना , दिलो पे लगाना यानी कि दिल लगाना है मैने

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ग़ज़ल 42, हाथ पर वो हाथ रखना आपका

17 मई 2024
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हाथ पर वो हाथ रखना आपका और ऊपर से दुपट्टा आपका बाल खुल जाना अचानक आपके मारने का है इरादा आपका

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ग़ज़ल 43, रास्ता दिल भटक गया शायद कुछ गले में अटक गया शायद

25 मई 2024
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रास्ता दिल भटक गया शायद कुछ गले में अटक गया शायद रात काली, ये रौशनी कैसी! सर से पल्लू सरक गया शायद

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ग़ज़ल 44, दिल, दर्द अब सारा निकाला जायेगा

2 जून 2024
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दिल, दर्द अब सारा निकाला जायेगा रस्ते में जो आएगा मारा जायेगा रातों को आखिर चैन कैसे आएगा दिन में भी जब वो चांद देखा जायेगा

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ग़ज़ल 45, कुछ न कहकर क्या कहा था तुमने

7 जून 2024
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कुछ न कहकर क्या कहा था तुमने "कुछ नही" इतना कहा था तुमने हम क्यों ना इश्क़ समझ के बैठें "कुछ तो समझो न" कहा था तुमने

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ग़ज़ल 46, उमर तो मोहब्बत की है ना

10 जून 2024
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ये तुमने इमारत की है ना कमाई शराफ़त की है ना खुदा अब बुला भी रहा है मोहब्बत इबारत की है ना

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ग़ज़ल 47, एक बरसात सी लड़की

10 जून 2024
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वो मेरे साथ की लड़की एक बरसात सी लड़की अपनी जिद पे अड़ी लड़की धूप में है खड़ी लड़की

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ग़ज़ल 48, दिल की बातें न दिल में रखा कीजिए

11 जून 2024
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अपनी आखों से तो और क्या कीजिए अपनी आखों से दिल की दवा कीजिए दिल की बातें न दिल में रखा कीजिए इश्क़ है तो इसे भी बयां कीजिए

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गज़ल 49, मौत भी तुम्हारे जैसी है

17 जून 2024
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बीच से ही लौट जाती है मौत भी तुम्हारे जैसी है जब हमे जी भर के रोना है क्यूॅं ये लड़की गुदगुदाती है

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ग़ज़ल 50, दिनों दिन दिल जलाना होता है

19 जून 2024
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ग़ज़ल कहना क्या आसां होता है दिनों दिन दिल जलाना होता है तिरी महफ़िल से उठके जाना है यहाॅं हर दिल निशाना होता है

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गज़ल 51,बरसातों के बादल अब दिल पर चूॅंयेगें

3 जुलाई 2024
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बरसातों के बादल अब दिल पर चूॅंयेगें तुम इन ऑंखों से अब गालों पर आओगी

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