तिश्नगी यूॅं आस में बुझती हुई है
इक नदी जो गाॅंव की सूखी हुई है
तेल से ऑंखें बदन नहला रहीं हैं
आग मेरे पास में बैठी हुई है
इक मोहब्बत नाम के लड़के किसी को
इक उदासी नाम की लड़की हुई है
हम भी सुलझाते हैं हाथों की लकीरें
ज़िंदगी किस हाथ में उलझी हुई है
शौक़ रखती है न वो भी शायरी का
यूॅं सुना है के तुम्हें बेटी हुई है
है तमन्ना घूमने की शहर सारे
ज़िंदगी कमबख़्त के घूमी हुई है
बीज हमने भी लगाया एक इक दिन
अब कहीं जा के कहीं इमली हुई है