इश्क की पाकीजगी से
इश्क की बन्दगी तक का सफर
मेरी नगमों मेरी गजलों में
मेरे अल्फाजों में बस इश्क रहा
मैं तुम्हें हारकर भी जीतती रही
क्योंकि मेरी रूह में बस तू रहा
अंधेरों की गुप्तगू से उजालों की
रोशनी तक बस तू ही रहा
इक इश्क था भीगी लकड़ी की तरह
मेरे भीतर ही भीतर सुलगता ही रहा।