मुझे प्रेम था हिम से
मैने उसे कैद नही किया मुठ्ठियों में
मैं जानती हूँ हिम को कैद करना मुश्किल है
कब तरल होकर फिसल जाए मुठ्ठी से
सच तो ये प्रेम और हिम एक जैसे ही हैं
प्रेम को जिस तरह कैद नही कर सकते
बिल्कुल बन्धन मुक्त है
उसी तरह हिम को रोकना मुश्किल है
पिघल जाता है ताप से
फर्क इतना है
प्रेम का ताप चढ़ता है
आत्मा से मिल जाता है
हिम का ताप पिघलता है
पानी हो जाता है
समंदर में मिलकर
फिर बूंद बन जाता है
धरा पर बरस जाता हैबूंद बनकर
मन की शीतलता बढ़ाने
प्रकृति पर प्रेम बरसाने
बारिश बनकर
शायद मुझे इसीलिए प्रेम है हिम से