भटकती हूँ बैचैन रूह सी
तुम्हें पाने के वास्ते
मुझे मत कैद करो
पत्थरों की बूत में तुम
मुझे आजाद रहना ही भाता है
मुझे आजाद रूह ही तुम रहने दो
मेरा परिचय भी बस इतना है
मैं हूँ बस तुम्हारे वास्ते
इश्क की गहराइयों में चाहा है तुम्हें
मैं तुम्हें जीती हूँ मुझे इसी अन्दाज में रहने दो
मैं आजाद हूं मुझे आजाद ही रहने दो
मैं मिलूँ सदी के प्रारब्ध या अंत में
मुझे प्रेम की पराकाष्ठा के साथ ही रहने दो
प्रेम की कल्पना हो नाम हो घनश्याम का
मैं बनूँ राधा उसकी वो मेरा हो शयाम सा