प्रेम भी किया तो असत्य से
क्या असत्य से प्रेम करना
कभी सत्य हुआ है ?
चेहरा भी देखो असत्य से भरा
क्या कभी असत्य चेहरा सत्य हो सकता है?
मेरा प्रेम तो सत्य था
बिल्कुल मीरा की तरह
मैने विषपान किया प्रेम का
प्रेम तो अमृत है
अमर हो गया प्रेम
प्रबल भावना इतनी थी प्रेम की
सत्य असत्य की झीनी रेखा विलुप्त हो गयी
दिखा तो बस प्रेम
प्रबल प्रेम निराकार भाव से
झूठ का आवरण तो दिखा ही नही
मुझे कान्हा तुम्हारे छल पर विश्वास
क्यों हो गया ?
मैं असत्य प्रेम को सत्य क्यों मानती हूँ?
मैं तुम्हें हर चेहरे में खोजती फिरती
भटक रही हूँ शायद कहीं तो ..
सत्य प्रेम विधमान हो और मैं तुम्हें
पा जाऊँ किसी पल किसी कण में
क्योंकि तुम तो सर्वत्र हो।