अक्सर ह्रदय पर पत्थर रख लेती हूँ
क्योंकि माँ हूँ हर दर्द सह लेती हूँ
बहुत कुछ समेटा है अपने भीतर ही भीतर
हाँ ,मैं उसे जब्त कर लेती हूँ
वह बोला था घर आयेगा एक दिन लौटकर
नही आया बस गया कहीं और कहीं और
माँ का ह्रदय रोज टूटता है बनता है
बनाती है एक थाली और घर पर
बिछाती है रोज बिस्तर एक और खाली
कभी तो आयेगा वो घर अपने
बादल का फटना मानो सब कुछ बहा ले जाना
आँखों से बूंद का कतरा
माँ की सहमी सहमी धड़कन का
दहल जाना
आज भी बैठी है
शायद आ जाये कोई अपना
मासूम सा सवाल लिये
मुझे भूख लगी है....