देहरादून: उत्तराखण्ड में चुनावी नतीजों को लेकर हर कोई अभी पसोपेश की स्थिति में बना हुआ है। हालांकि अभी 9 मार्च को कर्णप्रयाग की सीट पर वोटिंग होना बाकी है।
लेकन सूबे के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गाहे बगाहे 15 साल पुराना राजनैतिक इतिहास दोहरा दिया। शनिवार को पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कार्यकर्ता हार-जीत के लिए तैयार रहें।
उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव नतीजे आने से पहले ही मुख्यमंत्री के इस बयान के सियासी मतलब निकाले जाने लगे। हालांकि उसके बाद उन्होनें रविवार को मीडिया के सामने आकर अपने बयान का सही मतलब समझाया। मगर इस पूरे घटनाक्रम ने साल 2002 के दौरान हुये पहले विधानसभा चुनाव की मतगणना के दौरान तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जल्दबाजी में दी गई उनकी प्रतिक्रिया की याद ज़रूर दिला दी। उत्तराखण्ड में पहले विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने मौजूदा मुख्यमंत्री व तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत के नेतृत्व में लड़ा गया था। दरअसल, इस चुनाव से महज़ डेढ़ साल पहले उत्तराखण्ड (तब उत्तरांचल) अलग राज्य के रूप में वजूद में आया था तो भाजपा अपने आपको स्वाभाविक विजेता मान कर चल रही थी।
चुनाव के दौरान माहौल मतगणना शुरू होने के दो-ढाई घंटे बाद सामने आए आरंभिक रुझान भी कुछ इसी तरह का संकेत देते दिखे। भाजपा के तमाम दिग्गज अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले बढ़त ले रहे थे। शुरुआती तीन घंटों के बाद स्थिति यह थी कि भाजपा बहुमत के आंकड़े से ज्यादा सीटों पर रुझान में आगे निकल गई और उसे टक्कर दे रही कांग्रेस लगभग डेढ़ दर्जन सीटों पर सिमटती महसूस हुई। तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत स्वयं प्रदेश मुख्यालय में बैठकर मतगणना के रुझान पर नज़र रखे हुए थे। कांग्रेस का प्रदर्शन उस वक्त इस कदर दयनीय लग रहा था कि रावत ने केवल रुझान के ही आधार पर अपनी पहली प्रतिक्रिया देते हुए लगभग हार स्वीकार कर ली। खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया के जरिए चंद मिनटों में रावत की स्वीकारोक्ति हर जगह चर्चा का विषय बन गई और भाजपा खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई। स्वाभाविक भी था, सेनापति का अंदाज ए बयां परिणाम आने से पहले ही अगर ऐसा हो तो प्रतिद्वंद्वी तो फूला नहीं समाएगा।
सियासत का दिलचस्प मोड़
सियासत में दिलचस्प मोड़ तो तब आया जब भाजपा की यह खुशी बस चंद मिनटों की ही रही। दोपहर होते-होते नतीजों ने ऐसी पलटी खाई कि बहुमत के आंकड़े के स्पर्श के सुखद अहसास का लुत्फ उठा रही भाजपा जमीन पर आ गिरी। कहां तो रुझानों में स्पष्ट बहुमत के पार पार्टी नजर आ रही थी लेकिन नतीजे आए तो सिमटना पड़ा महज 19 सीटों पर। पार्टी के एक-दो को छोड़कर तकरीबन सभी दिग्गज चुनावी जंग में पराजित हो गए। उधर कांग्रेस, जो सार्वजनिक रूप से अपनी हार स्वीकार कर चुकी थी, सीधे जा पहुंची 36 विधायकों की जीत के साथ बहुमत के पार। उस चुनाव में बसपा को सात, उक्रांद को चार, राकांपा को एक और निर्दलीयों को तीन सीटों पर जीत मिली थी।
कांग्रेस सत्ता में तो आ गई मगर तब हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाया। कांग्रेस का पूरा चुनाव अभियान रावत पर ही केंद्रित था लेकिन पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी तत्कालीन नैनीताल सांसद नारायण दत्त तिवारी को, जो उससे पहले कहीं भी इस दौड़ का हिस्सा नजर नहीं आ रहे थे। अब यह बात कितनी सच है, मालूम नहीं मगर सत्ता के गलियारों में जोरशोर से चर्चा रही कि हरीश रावत जिस तरह नतीजों का सटीक पूर्वानुमान लगाने से चूक गए, इसी का ख़ामियाज़ा उन्हें उठाना पड़ा। अब राज्य के चौथे विधानसभा चुनाव में मतदान के बाद तक भी कांग्रेस और मुख्यमंत्री हरीश रावत लगातार स्पष्ट बहुमत हासिल करने का दावा करते रहे हैं मगर शनिवार को उन्होंने जिस तरह पहली बार नतीजों को लेकर स्टैंड बदला, उससे हर कोई चकित है। हालांकि कहने वाले इसे महाराष्ट्र निकाय चुनाव में चले मोदी मैजिक से जोड़कर देख रहे हैं लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या हरदा फिर जल्दबाजी कर गए या उन्होंने नतीजों को लेकर साफगोई बरतना ही बेहतर समझा।
हरीश रावत ने कहा जीत हमारी पक्की है
उत्तराखण्ड के सीएम हरीश रावत ने जीत का दम भरा और कहा पूरी तरह से आप लोग यह बात जान लीजिए कि हमारी जीत में किसी तरह का शक शुबह नहीं है। भाजपा का हमारे प्रति प्रेम कुछ ज़्यादा ही है।