थोड़ी उलझन में हूँ .. अपने खत की शुरूआत किस संबोधन से करूं. सिर्फ शहाबुद्दीन कहूंगी तो ये आपकी महानता पर सवाल होगा. शहाबुद्दीन जी या साहेब कहूंगी तो मेरा जमीर मुझे धिक्कारेगा. सो बिना किसी संबोधन के साथ और बिना किसी लाग लपेट के इस खत की शुरुवात करती हूं.
सबसे पहले तो आज़ाद फ़िज़ा के लिए मुबारक़बाद ...वैसे जेल में रहकर भी तो आप कैद नहीं थे. बिहार के किस जेल की दीवारें इतनी ऊंची हैं ,इतनी बुलंद है जो आपको कैद रख पाये?आप तो वो चश्म-ओ-चिराग़ हैं..जो सीवान के हर चश्म में बसे हैं. हम जानते हैं कि उन्हीं चश्म की बेचैनी की कदर करते हुए आप जेल की फाटक लांघ गये. और जो बुरे चश्म वाले हैं ना उनके लिए हम कहेंगे चश्म-ए-बद दूर. दाग देहलवी याद आ रहे हैं-चश्म-ए-बद दूर वो भोले भी हैं नादां भी हैं. आप उन नादां की फिक्र मत करिये. आप सीवान की शादाबियों को देखिये. आप चंदा बाबू की ओर हरगिज मत देखियेगा. आप तो ये देखिये कि सीवान की सड़कों पर पटाखें से लेकर बंदूकें तड़तड़ाने वाले कितने शगुफ्ता है.
आपकी रिहाई का जश्न देखा है.शाही स्वागत ने एक बार फिर बहुत कुछ कह दिया,, गोपालगंज में किसी नामाकूल ने आपके लिए हो रहे जलसे में पटाखे फोड़ने पर एतराज जताया. भला हुआ जो उसे हाथों हाथों सबक सिखा दिया गया. उसकी पिटाई के दरम्यान वर्दी वालों को चुपचाप तमाशा देखते देखा तो आज अंदाजा हुआ कि आपका रुतबा आपका रसूख सीवान में ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में कायम है., आज यकीन होने लगा कि सीवान से ही सूबा और सीवान से ही सियासत चलेगी. , गए रात तक टाइगर इज बैक के नारे... बाखुदा, आज यकीन हो चला कि डॉ राजेंद्र प्रसाद और मौलाना मजहरूल हक तो सीवान के लिए गाय और बकरी जैसे थे. बाघ तो आप हैं..बाघ नहीं आप शेर हैं...
आपके शहर से आपके ज़िले से ज़ाती राब्ता है मेरा ,मेरी मां सीवान से ही है ,,इस लिहाज़ से बचपने से आपके क़िस्से मुझे ख़ूब सुनाये गए है,,,पर आज उन लोगों को भी कोसने को जी कर रहा है . जिन्होंने नादानी में मेरे बचपने में ही मुझे गलत सलत किस्से सुना दिये. भला ये भी कोई बात हुई... गब्बर की तर्ज पर मुझे कहानियां सुनायी गयी थीं. सो जा वर्ना शहाबुद्दीन आ जायेगा...नादां लोग..भला किसी बच्चे के दिमाग में ऐसे किस्से भरते हैं...अरे आप शेर हैं..शेर की तरह ही रहेंगे..भला किसी जंगल में कोई शेर के खिलाफ बोल सकता है या क्या...ऐसे लोगों को मुआफ कीजियेगा...वो नहीं जानते होंगे कि शेर का मेमनों और बछड़ों का शिकार करना जंगल का इंसाफ होता है..अन्याय नहीं.
हे शेर..आज हकीकत जानने समझने लायक हुई हूं..देर से ही लेकिन दुरूस्त...जान गयी हूं कि जंगल में रहकर शेर से बैर नहीं करना चाहिये...कुछ कमअक्लों को देख रही हूं..हर जगह आपके ख़िलाफ़त में ज़हर उगलते हुए...मुझे उन पर तरस आ रही है...उन्हें क्षमा करना...वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं....
हे सीवान के पालनहार...मुझे अक्ल आ गयी है...मैं जानती हूं कि पटना में बैठे सियासी नुमाइंदे आपको शह देंगे..अपनी फ़िक्र करेंगे ,जान कीभी सियासत की भी जैसे एक वक़्त में अनन्त सिंह को पनाह दी थी और अब आपको देंगे,,.वैसे में इनके शरण में जाने से भला हम आपसे ही उम्मीद करें...
सो हे मृगपति...हे वनराज...मुझे रहम की उम्मीद बस आप ही से है..आप ही अपने जंगल की प्रजा को जान बख्शने का वरदान दे दो...ये जानते हुवे भी की आप अपने आप में कोई तब्दीली नहीं करनेवाले इस खत के ज़रिये एक गुज़ारिश है आपसे कि आप ही बदल जाओ ...महर्षि वाल्मीकि की तरह...शायद उम्र के इस पड़ाव में आकर आप थोड़ा सोचे बिहारवासियों के बारे में तो सम्भव हो पायेगा ,,फिर बिहार भी आपका यहाँ हुक़ूमत भी आपकी ,,
पेशे से पत्रकार रीमा प्रसाद के फेसबुक वॉल से साभार