नई दिल्लीः यूपी की राजधानी लखनऊ में अखिलेश सरकार करोड़ों के जमीन घोटाले में घिर गई है। सपा विधायक ने खुद को गोमती की जमीन का मालिक बताया। दावे के समर्थन में फर्जी दस्तावेज लगाए। चूंकि मामला सत्ता पक्ष का था तो अखिलेश सरकार ने बगैर जांच-पड़ताल किए 54 बीघा जमीन के बदले करोड़ों का मुआवजा विधायक को दे दिया। मामला सं ज्ञान में आने के बाद हाई कोर्ट ने गंभीर रुख अख्तियार किया है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों न गलत हलफनामा दायर करने पर आपके खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जाए। इस मामले की सीबीआई जांच के लिए हरीश चन्द्र वर्मा ने एक जनहित याचिका भी हाई कोर्ट में दायर कर रखी है।
मुख्य सचिव ने कोर्ट को किया गुमराह
अखिलेश के करीबी विधायक को बचाने के लिए मुख्य सचिव कोर्ट को गुमराह करने से नहीं चूके। कोर्ट की डेटलाइन के मुताबिक दो फरवरी को मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने हलफनामा सौंपा। इसमें झूठी जानकारी देते हुए कहा कि कमेटी बना दी गई है। अदालत को पता चला कि कमेटी के चेयरमैन जयप्रकाश सागर तो 14 जनवरी को ही पंजाब चुनाव में आब्जर्वर बनकर चले गए हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि अदालत को गुमराह करने पर सीआरपीसी की धार 340 के तहत मामला चलाया जाए। अब गली सुनवाई 7 फरवरी को है।
विधायक ने कहा-गोमती का मालिक मैं और सरकार ने मान लिया
सत्ताधारी विधायकों से जुड़े मामले में शासन-प्रशासन आंख मूंदकर फैसले लेता है। बानगी है यह मामला। याची अनु सिंह के मुताबिक 12 अक्टूबर 2015 को डीएम के आदेश पर जियामऊ, जुगौली, भिकमामऊ में गर अधिग्रहीत जमीनों का मुआवजा वितरण चल रहा है। कुल 13752 हेक्टेयर यानी 54 बीघा जमीन का चयन हुआ। फर्जी दस्तावेजों के जरिए सपा एमएलसी भुक्कल नवाब इसे निजी जागीर बता रहे, जबकि यह भूमि शहरी निकाय में आती है। सपा के एमएलसी और अखिलेश के करीबी बुक्कल नवाब ने लखनऊ में गोमती नदी से जड़ी जमीनों के बडे़ हिस्से पर अपना दावा किया। इसके समर्थन में फर्जी दस्तावेज लगाए। विधायक ने 1977 के जिस फैसले का हवाला देकर जमीन पर मालिकाना हक का दावा किया, जांच में पता चला कि कभी ऐसा कोई मामला अदालत की चौखट तक पहुंचा ही नहीं। सवाल उठा कि जब जमीन गोमती नदी में डूबी रहती थी तो फिर इस पर कैसे कोई मालिकाना हक जता सकता है। यह जमीन तो गोमती की हुई। विधायक ने 2011 में भी जमीन को लेकर दावा ठोंका था, मगर उस समय भी कोर्ट ने मामला खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट ने मुआवजे पर उठाया सवाल
पिछले साल 26 अक्टूबर को भी हाई कोर्ट ने जमीन मसले की सुनवाई की थी। कहा था कि एमए खान उर्फ बुक्कल नवाब के भूमि पर दावे की किसी सरकारी मुलाजिम ने जांच नहीं की। फिर सरकार ने किस आधार पर मुआवजा बांट दिया। हाईकोर्ट ने मुआवजे की वसूली न होने पर जिम्मेदार अफसरों से रिकवरी का आदेश दिया। इसके अलावा कोर्ट ने जांच के लिए 10 दिन में हाईपावर कमेटी बनाने को भी कहा। जिसे जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए तीन महीने का समय दिया। इसके बाद 30 जनवरी को इस मामले की सुनवाई जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राकेश श्रीवास्तव की बेंच ने की। पता चला कि कोर्ट के आदेश का सरकारी अमले ने पालन ही नहीं किया।