मधुर प्रेम की एक अभिलाषा,
तन क्षुधा-हीन; मन, हीन-निराशा।
रचे प्रकृति प्रेम की भाषा,
मन में उठती हर जिज्ञासा।
दशम रस उद्गम वात्सल्य,
सूत्राधार जननी तुम आशा।
जीव जगत की प्रेम प्रकाशा,
एक मात्र सब की अभिलाषा।
एक मात्र सब की अभिलाषा।
सूत्राधार जननी तुम आशा।