झूठ के पांव नहीं होते लेकिन,
वह हवा संग उड़ जाता ।
भार न्यूनतम होने से वह,
कहीं ठहर न पाता है।
होता है भार अधिक सच का,
बन अडिग सदा रह जाता है।
सच का जहाँ बसेरा हो,
वहाँ फिर, झूठ कहाँ टिक पाता है।
15 सितम्बर 2021
झूठ के पांव नहीं होते लेकिन,
वह हवा संग उड़ जाता ।
भार न्यूनतम होने से वह,
कहीं ठहर न पाता है।
होता है भार अधिक सच का,
बन अडिग सदा रह जाता है।
सच का जहाँ बसेरा हो,
वहाँ फिर, झूठ कहाँ टिक पाता है।
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उपाधि से अभियंता हूं, शिक्षा से जुड़ा है नाम; अभिरुचि कुछ लेखन में है, चित्रकारी भी है काम। विद्यार्थी हूं मैं इस जीवन में, खोज रहा हूं ज्ञान; गहन प्रकृति का प्रेमी हूं, और ज्ञान विज्ञान। २९ अप्रैल का दिन है मेरा, मिली मुझे पहचान। जन्म हुआ है मध्य प्रदेश में, संस्कारधानी मेरी शान।D