''हमारी क्या सिचुएशन है, ये न कोई मीडिया दिखाता है, न कोई मिनिस्टर सुनता है. कोई भी सरकारें आए हमारे हालात वही बदतर हैं. मैं आपको उसके बाद तीन वीडियो भेजूंगा लेकिन मैं चाहता हूं आप पूरे देश की मीडिया को नेताओं को दिखायें कि हमारे अधिकारी हमारे साथ कितना अत्याचार व अन्याय करते हैं. इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा फैलायें ताकि मीडिया जांच करे कि किन हालातों में जवान काम करते हैं.''
बीएसएफ के जवान तेजबहादुर यादव के वीडियो को लेकर मीडिया ज़रूर सरकार से जवाब मांग रहा है. मगर अपने वीडियो में तेजबहादुर ने मीडिया से भी सवाल किया है. मीडिया से भी जवाब मांगा है. उनकी यह लाइन तीर की तरह चुभती है कि हम जवानों के हालात को कोई मीडिया भी नहीं दिखाता है. मीडिया ने भी तेजबहादुर जैसे जवानों का विश्वास तोड़ा है. सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस में जवानों की ज़ुबान पर ताले जड़ दिए जाते हैं. मीडिया अक्सर प्रमुखों से बात कर चला आता है. परेड के समय कैमरे इन जवानों के जूतों की थाप को क्लोज़ अप में रिकार्ड कर रहे होते हैं, गौरव दिखा रहे होते हैं, होता भी है, लेकिन काश कैमरे उन जवानों के पेट भी दिखा देते, जो मुमकिन है अभ्यास के साथ-साथ भूख से भी पिचके हुए हों.
तेजबहादुर यादव की लोगों से यह अपील कि उनकी जान ख़तरे में है. इस वीडियो को ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें ताकि मीडिया तक बात पहुंचे, किसी भी न्यूज़ रूम में शोक संदेश की तरह सुनी जानी चाहिए. जवानों की ज़िंदगी का एकमात्र मुकाम शहादत नहीं है. उससे पहले की शहादत का भी हिसाब नोट होना चाहिए. मगर अफसोस मीडिया सिर्फ शहादत के समय जवानों की बात करता है. कभी-कभार शहीदों के परिवारों की उपेक्षा दिखाता है मगर जो ज़िंदा हैं और जिन्हें लड़ना है, उनकी बात कहां आ पाती है. तभी तो तेजबहादुर को अपील करनी पड़ती है. हर शाम मंत्रियों और पार्टी प्रवक्ताओं को लेकर बैठकी लगाने वाले मीडिया की ये हालत हो गई है अब कोई जवान उस तक अपनी बात पहुंचाने के लिए जनता का ही सहारा लेता है.
मीडिया में रिपोर्टरों का तंत्र कमज़ोर हुआ है. एंकरों की जमात आई है जिन पर तरह-तरह के तंत्रों की पकड़ मज़बूत होती जा रही है. मीडिया सिस्टम को सिर्फ मंत्री और सरकार के नाम से पहचानता है. उसके भीतर काम कर रहे लोगों से उसकी सहानुभूति कम ही होती है. तभी तो टीचर पिट रहे होते हैं, सफाई कर्मचारी दो साल से बिना वेतन के काम कर रहे होते हैं इससे न तो समाज को फर्क पड़ता है, न मीडिया को और न सरकार को. इसलिए मीडिया को तेजबहादुर यादव के वीडियो से अपनी विश्वसनीयता चमकाने की जगह यह सोचना चाहिए कि वो कितने लोगों का विश्वास तोड़ रहा है. अगर मीडिया इस विश्वास को हासिल करना चाहता है तो तेजबहादुर के वीडियो को ही बार- बार न दिखाये. एक जवान के हौसले की आड़ न ले. कैमरा लेकर निकले और तरह-तरह के जवानों की ज़िंदगी में झांकने का साहस करे. सेना, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, पुलिस, होमगार्ड. क्या मीडिया ऐसा करेगा या ठंड में कौन बाहर जाए, तेजबहादुर के वीडियो को लेकर ही सवाल कर लेगा.
तेजबहादुर ने संकेत दे दिया है कि मीडिया नहीं आएगा तो लोग ख़ुद मीडिया बन जाएंगे. एक की आवाज़ को लाखों की आवाज़ बना देंगे. तेजबहादुर के वीडियो ने भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत किया है. एक सिपाही का ऐसा खाना देखा नहीं गया. नाश्ते में एक पराठा? दाल में नमक नहीं. कभी कभार भूखे भी सोना पड़ता है. हो सकता है कि चालाक अधिकारी ख़राब मौसम के कारण राशन न पहुंचने का बहाना बना दें और नियमावलियों और अनुशासन के फंदे से हमेशा हमेशा के लिए तेजबहादुर जैसे जवानों की आवाज़ को बंद कर दें, मगर यह वीडियो बीएसएफ को बदल देगा.
ट्रेनिंग में बहाया गया पसीना युद्ध में ख़ून बचाता है. वर्षों पहले बीएसएफ के किसी सेंटर की दीवार पर ये लाइन देखी थी. किसी फिल्म के डायलॉग की तरह याद रह गई. तेजबहादुर के वायरल हो रहे वीडियो ने देश का ख़ून बचाया है. उन अफसरों के गिरोह से जो जवानों का ख़ून चूसते हैं. बाहर से ज़्यादा भीतर से भ्रष्टाचार को उजागर करना मुश्किल काम होता है. सीमा पर लड़ने वाले इस जवान ने अपनी सीमाओं से आगे जाकर अपने बल और देश की रक्षा की है. कायदे से गणतंत्र दिवस की परेड में तेजबहादुर का सम्मान किया जाना चाहिए.
तेजबहादुर का वीडियो स्टंट नहीं है. उस वीडियो को लेकर हो रही प्रतिक्रिया स्टंट लगती है. क्या हम नहीं जानते कि जवानों के साथ इसी तरह के बर्ताव होते हैं. ग्यारह ग्यारह घंटे की ड्यूटी, कोई छुट्टी नहीं. क्या यह कोई नई बात है. हम सिर्फ जवानों की कीमत ताबूत से पहचानते हैं, वो भी चंद पलों के लिए जब शहीद कहकर हम ख़ुद को धोखा दे रहे होते हैं कि देश के लिए सोच रहे हैं. हमने कभी जानने का प्रयास ही नहीं किया कि वो किस तनख्वाह और किस हालात में काम करते हैं. आपके घर के सामने घूम रहे सिपाही से पूछ लीजिए. बता देगा कि कितने दिनों से छुट्टी नहीं हुई. दिल्ली पुलिस का ही एक जवान इसके ख़िलाफ़ फेसबुक पर लिखता रहा है. सिपाही ही नहीं, थानेदार की भी वही हालत है.
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तुरंत सक्रियता दिखाई है, इससे भरोसा रखना चाहिए कि वे न सिर्फ इस मामले की जांच करेंगे बल्कि पूरे सिस्टम की पड़ताल करवायेंगे. हर नागरिक की एक और चिंता है. जांच और नियमों के नाम पर तेजबहादुर को प्रताड़ित न किया जाए. इसलिए सरकार यह आश्वस्त करे कि तेजबहादुर के साथ कुछ भी नहीं होने दिया जाएगा. मानसिक प्रताड़ना के कारण सीनियर को गोली मारने, ख़ुदकुशी करने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. कम से कम तेजबहादुर ने सरकार, मीडिया और देश से बात करने की कोशिश की है. उनकी इस बेचैनी की आवाज़ को सुनिये. एक जवान का साहस बोल रहा है. अपने लिए नहीं, देश के लिए बोल रहा है.