नई दिल्लीः मोदी का रोड शो है, बाबा का दर्शन है, अखिलेश-राहुल का साथ है और बनारस की गलियों मे झूमते हाथियों का जुलूस है। सड़क के आड़े-तिरछे डिवाइडर हों, पान की छोटी गुमटियां हों, पुराने मकानों की खपरैल छतें हों, समर्थकों ने हर चप्पे पर अपने रंग के झंडे गाड़ दिए हैं।
बनारस होली से कई दिन पहले ही जैसे किसी रंगारंग पर्व में सराबोर हो। मोदी ने यहां पड़ाव डालकर भगवा के रंग गहरे किये तो अखिलेश-राहुल की मौजूदगी ने बनारस के रस में मानों चुनाव का नशा घोल दिया हो। हर चौराहे पर वोट की बिसात बिछी है। हर नुक्कड़ पर नानस्टाप सियासी विश्लेषण जारी है।
1848 में बने बनारस क्लब मे कभी कु्त्तों और हिन्दुस्तानियों के प्रवेश पर पाबन्दी थीपर आज क्लब के डाइनिंग एरिया में एक बड़ी स्क्रीन लगी है । एनडीटीवी का बनारस पर शो दिखाया जा रहा है और वोडका के घूंट के बीच इसी शो पर यहां कांउटर बहस जारी है। 15 से 20 लाख खर्च करके ही इस ऐतिहासिक क्लब मे कोई सदस्यता लेकर बहस में शामिल होने का हकदार हो सकता है। फिलहाल बहस में पलड़ा मोदी का भारी दिखता है लेकिन अखिलेश के पक्ष में भी स्वर मुखर हैं।
बनारस क्लब दरअल बनारस का हैबीटैट सेंटर है और यहां का मत शहरी एलीट का मत समझा जाता है।
उधर बनारस के बीचोबीच सिंगरा थाने के सामने बीजेपी का प्रांतीय ऑफिस है। यूं तो ऑफिस के दूसरे तल पर बैठकर आरएसएस से आए संगठन मंत्री रत्नाकर पांडेय समूचे पूर्वांचल में बीजेपी की बिसात बिछा रहे हैं, मगर आजकल उनके दफ्तर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का कब्जा है। टीम अमित शाह में प्रशासन का सारा काम ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल देखते हैं, वहीं उम्मीदवारों की हर समस्या के निराकरण का काम सुनील बंसल के पास है। सुनील बंसल को अमित शाह का दाहिना हाथ कहा जाता है। भाजपा में शाह के राज में ही बंसल को यूपी भाजपा में ताकतवर कुर्सी यानी प्रदेश संगठन मंत्री का पद नसीब हुआ। अमित शाह के तीसरे ट्रंप कार्ड श्रीकांत शर्मा हैं। मथुरा में चुनाव लड़ने के बाद सीधे वे बनारस पहुंचे गए। सिगरा के इसी दफ्तर से शाह, गोयल, बंसल और और शर्मा की चौकड़ी पूरे चुनाव को रिमोट से कंट्रोल कर रही। गेस्ट अपीयरेंस के तौर पर दफ्तर में कभी-कभी प्रदेश प्रभारी ओम माथुर या केंद्रीय मंत्री नड्डा के कदम पड़ते हैं।
अब बात तीन लोकों से न्यारी काशी के गंगातीरे घाटों की। बनारस में गंगा के चार मील लम्बे तट पर यूं तो कुल 84 घाट हैं, मगर इसमें पांच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से 'पंचतीर्थ' कहा जाता है। ये हैं अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिका घाट। किसी भी घाट पर आप चले जाइए, सियासी कोलाहल साफ महसूस होगी। घाट की सीढ़ियों पर बैठे लोग एक ही चर्चा करते मिलेंगे-भाई माहौल क्या है..?। असीघाट के पास रिवरफ्रंट के कुछ हिस्से पर सजावट और सफाई दिखती है, मगर बहुत बड़ा बदलाव नहीं दिखता है। नमामि गंगे योजना की बात करें तो गंगा के पानी में इसका असर तो नहीं देखने को मिला है, हां घाटों का चेहरा जरूर कुछ बदल गया है।
और अंत में
बनारस को समझना है तो नज़ीर बनारसी की ये पंक्तियाँ जरूर पढ़ें।
ऐसा भी है बाज़ार बनारस की गली में
बिक जाएँ ख़रीदार बनारस की गली में
हुशियारी से रहना नहीं आता जिन्हें इस पार
हो जाते हैं उस पार बनारस की गली में
सड़कों पर दिखाओगे अगर अपनी रईसी
लुट जाओगे सरकार, बनारस की गली में।"