... इस रिपोर्ट को सरकार ने सीधा खारिज करके ठीक ही किया है.
अमेरिकी माइनॉरिटीज वाचडॉग की इस रिपोर्ट को भारत सरकार की ओर से खारिज करते हुए फॉरेन मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन विकास स्वरूप ने कहा कि एक बार फिर यूएस कमीशन भारत, उसके कॉन्स्टिट्यूशन और सोसाइटी को समझने में फेल साबित हुआ है. जाहिर तौर पर, भारत का संविधान सभी सिटीजन को फंडामेंटल राइट्स और रिलिजियस फ्रीडम की गारंटी देता है तो यहां तमाम धर्मों के लोग भी डेमोक्रेटिक प्रिंसिपल्स का सम्मान करते हैं और यह आज से नहीं है बल्कि सदियों और शताब्दियों से है. यह रिपोर्ट इसलिए भी हास्यास्पद हो जाती है, क्योंकि इसने अपनी रिपोर्ट में कुछ भी ठोस नहीं दिया है, बल्कि साक्षी महाराज जैसे कुछेक नामों का ज़िक्र करके इसने अपनी रिपोर्ट को और भी हल्का बना दिया है. आखिर साक्षी महाराज, साध्वी प्राची और दुसरे कुछ छोटे मोटे संगठनों का कितना प्रभाव है, यह बात किसी से छिपी तो नहीं है! भारतीय जनमानस के 1% वर्ग पर भी तो अतिवादियों का प्रभाव नहीं है और यह बात बार-बार साबित भी हुई है. हाँ, विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर जरूर ही कुछ लोगों की भौंहे टेढ़ी हुई रहती हैं, किन्तु यह संगठन अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए कहीं ज्यादा समर्पित है, जबकि राष्ट्र के प्रति इसकी जिम्मेदारी को लेकर कहीं भी 'किन्तु-परन्तु' नहीं किया जा सकता है. अब कोई राजनीतिक विचारधारा को लेकर 'हीन भावना' से ग्रसित हो जाए तो उस कुंठा का इलाज भी क्या है? वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही माध्यमों से अतिवादियों के खिलाफ नाराजगी जता चुके हैं और ...