... इसका यह मतलब कतई नहीं है कि शिक्षा आवश्यक नहीं है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र अथवा समाज में शिक्षा व्यक्तित्व निर्माण तथा सामाजिक व आर्थिक प्रगति का मापदंड होती है. शिक्षा के बिना किसी देश का विकास संभव ही नहीं है, किन्तु तब समस्या उत्पन्न हो जाती है जब 'डिग्री' और 'शिक्षा' में भिन्नता ही नहीं, बल्कि सिरे से अंतर दिखने लगता है. वहीं अगर हम भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली के बारे में बात करें तो आज़ादी के बाद से ही भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है जिसे सन् 1835 ई॰ में अंग्रेजों द्वारा ही लागू किया गया था. तब से लेकर आज तक भारत में शिक्षा का प्रारूप मूलरूप से वही है और उसमें कोई व्यापक बदलाव नहीं हुआ है. यहाँ यह बात समझनी आवश्यक हो चुकी है कि जिस तेज गति से भारत के सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक परिदृश्य में बदलाव आ रहा है उसे देखते हुए देश की शिक्षा प्रणाली की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, चुनौतियों तथा संकट पर गहरे अध्ययन की आवश्यकता है. हमारी सामाजिक संरचना से वर्तमान शिक्षा प्रणाली के संबंधों, पाठ्यक्रमों का गहन विश्लेषण तथा इसकी मूलभूत कमियों पर ध्यान न देने के साथ ...
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