नई दिल्ली : उत्तरप्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों से पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को इस बात का अंदेशा था कि यूपी में बीजेपी की सरकार आने वाली है। आरएसएस ने इसी को देखते हुए राम मन्दिर बनाने के लिए कानून बनाने की कवायद शुरू कर दी थी। आरएसएस के रिसर्चर दिलीप देवधर ने एक अख़बार से बातचीत में बताया कि यूपी चुनाव से पहले आरएसएस ने यूपी में राममंदिर को लेकर कानूनी जानकारों से सलाह मश्विरा करना शुरू कर दिया था। उनका कहना है कि अगर आपसी बातचीत से राममंदिर का हल नही निकलता है तो वह इस पर कानून बनाने का रास्ता पकड़ेंगे।
आरएसएस को सुप्रीम कोर्ट की इस बात से भी राहत मिली है जिसमे कहा गया है कि इस मामले को अदालत के बाहर बातचीत से सुलझाया जाये तो बेहतर होगा। आरएसएस यह भी मानता है कि इस वक़्त राममंदिर बनाने के लिए परिस्थितयां अनुकूल हैं। केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की सरकारें हैं क्योंकि इससे पहले जब भी आरएसएस और हिन्दू महासभा ने राममंदिर का जिक्र किया तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी।
योगी अवैद्यनाथ
आरएसएस रिसर्चर दिलीप देवधर का कहना है कि योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाना राममंदिर बनाने की दिशा में पहला कदम है। गौरतलब है कि 2 मार्च 2016 को संघ में इस बात की सहमति बनी कि ''1992 में ढांचा तोड़ दिया गया, अब केंद्र में अपनी सरकार है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने पक्ष में आ जाये, तो भी प्रदेश में मुलायम या मायावती की सरकार रहते राम जन्म भूमि मंदिर नही बन सकता। इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा।
RSS से पहले योगी आदित्यनाथ के गुरु ने उठाया था राममंदिर का मुद्दा
गोरखमठ पीठ के महंत दिग्विजय नाथ ने 1949 में बाबरी मस्जिद में राम की मूर्तियां रखने में अहम भूमिका निभाई थी। यानी आरएसएस से पहले हिन्दू महासभा ने 1949 में अयोध्या में राममंदिर का मुद्दा उठाया था।
आरएसएस ने अयोध्या में राममंदिर का मुद्दा 1964 में विश्व हिन्दू परिषद के जरिये उठाया था। आरएसएस इस बात को जानता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास केंद्र की सत्ता है इसलिए वह इस मसले पर खुलकर सामने नही आ सकते इसलिए इस काम को महंत दिग्विजय नाथ के शिष्य योगी आदित्यनाथ पूरा कर सकते हैं।