बीजिंग : दुनिया के दो सबसे बड़े देश भारत और चीन। दोनों देशों के बीच आर्थिक महाशक्ति बनने की भी होड़ मची हुई है लेकिन इन दोनों देशों में एक बात जो समान है वो है कालाधन। इससे निपटने के लिए दोनों देशों में इन दिनों बड़े स्तर पर अभियान भी चलाये जा रहे हैं। भारत और चीन में अंतर यह है कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोकतंत्र को सबसे आगे माना जाता है लेकिन चीन में सत्ता के आगे जनता बेबस है। दोनों देशों में चल रहे भ्रष्टाचार के अभियानों में बुनियादी फर्क यह है कि चीन में भ्रष्टाचार की कार्रवाई शी जिनपिंग अपनी पार्टी के लोगों से शुरू कर रहे हैं जबकि भारत में सत्ताधारी पार्टियों में रिवाज है कि वह अपने नेताओं के भ्रष्टाचार को बचाती है।
चीन के राष्ट्रपति के रूप में शी जिनपिंग अपने पांचवे साल में प्रवेश कर चुके हैं। इस बात में कोई शक नही है दुनिया के सबसे अधिक जनसँख्या वाले देश के राष्ट्रपति के रूप में जिनपिंग का शासनकाल भी शुरुआत से ही दमनकारी रहा। शी जिनपिंग से चार दशक पहले की तुलना चीन की बात करें तो अब तक चीन उदारवादी प्रणाली की ओर नही बढ़ सका है।
40 सालों में पहली बार चीन में इस बात की कोई चर्चा भी नही कर सकता कि चीन उदारवादी हो रहा है। चीन में वकील, सामजिक कार्यकर्ता, मजदूर कार्यकर्ता कुचले जा रहे हैं। शी जिनपिंग ने खुद चीन में अब एक एंटी करप्शन अभियान 'स्काय नेट' चलाया है। जिनपिंग को जनता जा भरपूर समर्थन प्राप्त है क्योंकि वह अबतक 190 वरिष्ठ अधिकारी और हजारों भ्रष्ट स्थानीय कार्यकारी अधिकारियों को भ्रष्टाचार के मामले में दंडित कर चुके हैं।
चीनी मीडिया की ख़बरों की माने तो इस अभियान में चीन अब तक 2.3 अरब युआन हासिल कर चुका है, जिसमे अब तक 908 लोगों पर कार्रवाई हो चुकी है। इनमे से 122 सरकारी अधिकारी हैं। शी जिनपिंग की अबसे खास बार यह है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहली कार्रवाई अपने ही कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं पर कर रहे हैं। लेकिन भारत में सत्ता में रहने वाली पार्टियां अपने नेताओं को बचाती नाजर आती हैं।