नई दिल्ली : कहते हैं कि बड़ा आदमी बनने के लिए बड़ा सोचने के साथ साथ बड़े सपने भी देखना जरूरी होता हैं और उनको पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती है . खुद को साबित करने और अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है. सु-कैम के फाउंडर कुंवर सचदेव की गिनती उन लोगों में की जाती है जिन्होंने अपनी मेहनत से नाम कमाया. किसी ने सोचा नहीं था बसों में पेन बेचकर पेट पालने वाला कभी इतनी बड़ी कंपनी खड़ी कर देगा. आज इन्वर्टर बनाने वाली सु-कैम पावर सिस्टम लिमिटेड कंपनी दुनियाभर में अपने प्रोडक्ट सेल कर रही है. एक छोटी सी दुकान से शुरू की ये कंपनी आज 2300 करोड़ रुपए की है.
गली मोहल्लो में जाकर पेन बचते थे कुंवर
एक मिडील क्लास परिवार में जन्मे कुंवर के घर की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी. पिता रेलवे में सेक्शन ऑफिसर थे और उस वक्त सेक्शन ऑफिसर की तनख्वाह ज्यादा नहीं हुआ करती थी. इसी वजह से घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. कुंवर का बचपन आर्थिक तंगी में गुजराना पड़ा. पढ़ाई करने के साथ वे खाली समय में अपने बड़े भाई के साथ साइकिल पर गली-मोहल्लों में जाकर पेन बेचने का काम करते थे. इतना ही दोनों भाई बसों में भी पेन बेचते थे. कुंवर तीन भाई हैं और उनकी पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई हैं. कुंवर का बचपन का सपना था कि वे डॉक्टर बनें, लेकिन शायद उनकी किस्मत में बिजनेसमैन बनना था.
पैसे नहीं थे पिता ने प्राइवेट स्कूल से निकाल कर गवर्नमेंट स्कूल में डाल दिया था
कुंवर जब 5 वीं क्लास में थे तब उनके पिता ने उन्हें प्राइवेट स्कूल से निकाल कर गवर्नमेंट स्कूल में डाल दिया. 12वीं क्लास के बाद कुंवर ने मेडिकल का एंट्रेस एग्जाम दिया, लेकिन 12वीं में अच्छे नंबर नहीं आने के कारण उन्हें मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं मिला। बता दें कि उस समय 12वीं में 50 फीसदी आना जरूरी था, तभी मेडिकल में दाखिला मिल पाता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और दोबारा 12वीं का एग्जाम दिया, इस बार वे स्कूल में टॉप रहे, लेकिन मेडिकल एग्जाम पास नहीं कर पाए। बस इसी के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का इरादा छोड़ा दिया और हिंदू कॉलेज दिल्ली से स्टेटिस्टिक्स में ऑनर्स किया
सु-कैम का कोई मतलब नहीं होता.....
लॉ की पढ़ाई पूरी करने बाद उन्होंने केबल टीवी कंपनी में नौकरी शुरू कर दी. वे यहां मार्केटिंग का काम करते थे. वे घर-घर जाकर केबल टीवी लगाते थे. 2 साल नौकरी करने बाद उन्होंने अपनी सैलरी से बचाए 10 हजार रुपए से 1988 में खुद का केबल बिजनेस शुरू किया, जिसका नाम उन्होंने सु-कैम रखा. बता दें कि उन्हें कंपनी का नाम सु-कैम तब माइंड में आया जब वे पेन बेचा करते थे और उसके बाद उन्होंने एक टीवी केबल कंपनी में काम किया था. शुरुआत में उन्होंने होटलों में केबल टीवी लगाया. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'सु-कैम' शब्द का कोई मिनिंग नहीं है. बाद में उन्होंने केबल टीवी का बिजनेस बंद किया और इन्वर्टर का बिजनेस शुरू किया.