नई दिल्ली : 32 साल पहले भोपाल के यूनियन कार्बाइड के कारखाने मे गैस लीक होने से तकरीबन 15000 लोगों की जाने चली गई थी। उस हादसे के दौरान वहां 332 टन टॉक्सिक कचरा भी जमा हो गया था। ये कचरा आज तक केंद्र और राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ था लेकिन अब इस कचरे को जलाने की पूरी रणनीति बन चुकी है।
इससे पहले इस बात का डर था कि इतनी बड़ी मात्रा में इस यूनियन कार्बाइड के कचरे को जलाने से प्रदूषण का स्तर बढ़ जायेगा। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक साल पहले एक प्रयोग किया गया। जब 10 टन कचरे को मध्यप्रदेश के धार जिले के पीथमपुर स्थित रामकी समूह के निस्तारण संयंत्र में जलाया गया।
इस कचरे को जलाने के बाद इससे पैदा हुए प्रदूषण पर अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार की गई। इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसको जलाने से हुआ प्रदूषण स्वीकार्य सीमा के अंदर है।
500 करोड़ में जलेगा कचरा
सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद फैक्ट्री के जिस 10 टन कचरे को जलाया गया था उसमे 15 करोड़ का खर्च आया। जबकि इस इस 332 टन कचरे को जलाने में 500 करोड़ तक की लागत आ सकती है। सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि इस कचरे को जलाने का ठेका किसे दिया जाये। इसे मध्यप्रदेश सरकार को सौंपा जाये या इसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय निपटाए।
क्या थी भोपाल गैस त्रासदी
मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर मे 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था।