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कहा था भूल न जाना

18 मई 2022

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समुद्र के किनारे एक बच्ची बालू का घरौंदा बडी ही तनमयता से बना रही थी। वह घरौंदा बनाने मे जैसे खोई थी। पास ही उसके मां पापा उसको  लगन से घरौंदा बनाते देख रहे थे और मुस्करा रहे थे। उसी जगह एक और बच्ची भी उसकी देखादेखी घरौंदा बनाने मे लगी थी पर लाख प्रयत्न करने के बाद भी वह उस बच्ची की तरह बेहद खूबसूरत घरौंदा बना ही न पा रही थी। वह थोडा़ बनाती और बिखर जाता जिससे वह झुंझला गयी थी। थोडी जलन भी उसे हो रही थी कि मैं न बना पा रही और ये इतना सुंदर घरौंदा बना रही है। उसका घरौंदा वास्तव में इतना खूबसूरत बन रहा था जिसका जवाब नहीं। आखिर उस बच्ची से रहा न गया और वह ईर्ष्या में आकर उठी और एक जोर से पांव मारा और उस लड़की का घरौंदा तहस नहस कर डाला । जिसका घरौंदा सुंदर बन रहा था उसकी मां कैमरे से उसकी तस्वीरें ले रही थी तो उसका घरौंदा बनाना ,इसका पांव मार कर उसे नष्ट करना सबकी तस्वीरें कैमरे में आ गयीं। वह लड़की रोते हुये मां से बोली मां देखो उसने मेरा घरौंदा तोड़ दिया,और वह बच्ची जिसने तोडा़ था वह पांव पटकती वहां से चली गयी।
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"देखो ,देखो ईशान ,मेरे पापा मेरे लिये कितना अच्छा खिलौना लाये हैं"। "अच्छा मुझे भी दो न खेलने को"। "ये लो न ,तुम तो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो । ईशान और रति दोनों के पापा बहुत अच्छे दोस्त थे और आमने सामने ही रहते थे। दोनों दोस्तों के ये दोनों बच्चे आपस में पक्के वाले दोस्त थे। दोनों हरदम साथ ही रहते,साथ ही खाते,साथ स्कूल,साथ होमवर्क भी होता। स्कूल में कोई ईशान को कुछ कह देता तो रति उसका मुंह नोंच लेती और रति को कोई सफेद बुड्डी कहकर चिढाता(वह बहुत गोरी थी)तो ईशान उसके एक कर्म बाकी न रखता। रति के एक भाई भी था मगर वह ईशान के संग ही रहती। 
दोनों साथ साथ बडे़ हो रहे थे और समय बीत रहा था। 
*******************************************ऐ "ईशान के बच्चे!आज तो तुम्हारा सोलहवां जन्म दिवस है हर बार की तरह इस बार भी सोच रही हूं कि तुम्हें कुछ सर्प्राइज़ दूं मगर इस बार कुछ समझ न पा रही "। "सर्प्राइस तो मैं तुम्हें दूंगा ,वह बुदबुदाया।क्या ?
"रहने दे रहने दे। इस बार तेरा मूड न होगा तभी कह रही" ,कहकर ईशान ने उसके गाल नोंचे,।"ईईईईईशान पिटोगे आज अपने जन्म दिवस पर"। "चलो चलो गुब्बारे फुलाओ,घर तुम्हीं सजाओगी ,हर बार की तरह"। 
"सजा दूंगी ,पर मेरा जीवन तो तुम्हें सजाना होगा"। "क्या" ,वह आश्चर्य से देखने लगा। उसने ईशान की बाहों में बाहें डाल कर कहा "मैं तुम्हें चाहने लगी हूं ईशान। तुम्हारे मन की बात जानना चाहती हूं क्या तुम भी मुझे पसंद करते हो?" । ईशान बोला "शायद हां क्योंकि तुम्हारे बिना मुझे कुछ अच्छा न लगता"। "अरे तो यही तो प्यार होता है बुद्धू"और वह खिलखिला दी। 
सारे मेहमान आ चुके थे। सब तैयारियां हो चुकी थीं ,पर रति के पापा अभी न आये थे। "रति ,बेटी घर जाकर देखो तुम्हारे मां पापा क्यों न आये अभी तक,उन दोनों के बिना केक न कटेगा"। "अरे तो फोन कर लीजिये न ,क्यों बच्ची को दौडा़ रहे हैं?ईशान की मां बोलीं। "उस धूर्त को फोन कर चुका हूं,उठा ही न रहा"।ईशान के पापा बोले। 
रति घर गयी । लौट कर आई तो बहुत उदास थी। थोडी देर बाद उसके मां पापा आ गये थे और केक काटकर पार्टी शुरू हो चुकी थी।ईशान देख रहा था कि रति बहुत उदास है।  मेहमान खाना खाने मे व्यस्त हो गये थे । बडी देर से उसे रति न दिखी थी। बहुत जोरों की बारिश शुरू हो गयी थी। "कहीं रति किसी बात से नाराज होकर चली तो न गयी "ईशान बुदबुदाता हुआ बाहर आया तो देखा कि रति बाहर बराम्दे के झूले के पास खडी रो रही थी। "क्या हुआ रति?तुम यहां क्यों चली आईं?और तुम रो क्यों रही हो?
रति ने ईशान की बाहों में समां कर कहा "तुम्हारे पापा का ट्रांसफर हो गया और तुमने मुझे बताया भी नहीं। मेरे मम्मी पापा को सुबह ही अंकल आंटी ने बता दिया था तभी वह दोनों सुबह से उदास थे और पार्टी मे न आ रहे थे मैंने उदासी का कारण पूछा तो कुछ बताया नहीं। मैं घर जा कर उन्हें बुला कर लाई तब आये पर वजह अब पता चली जब आंटी से मां ने पूछा कि तैयारी हो गयी या मैं रात में रुक कर करवा दूं। "मैं तुम्हें पार्टी के बाद बताने वाला था। मैं तुम्हें उदास न देखना चाहता था। मैं कल जा रहा हूं,दूसरे शहर"। देखो मैं तुम्हीं से विवाह करूंगी ।मेरी प्रतीक्षा करना ,मुझे भूल न जाना ,कहकर वह उसकी बाहों में फफक पडी। और ईशान जैसे उसके आंसुओं मे डूब सा गया।
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अगर लड़का ,लड़की चाहें तो आपस में एक दूसरे से बात कर सकते हैं, और वह दोनों पास ही पार्क की एक बेंच पर बैठ गये। लड़की ने पूछा " आपसे बस एक ही बात पूछना चाहती हूं ,आपके जीवन में कोई कभी रहा तो नहीं?"।उसने एक पल को सोचा और जैसे किसी निर्णय पर आकर बोला "नहीं",और उन दोनों का विवाह हो गया। वह काॅलेज आते जाते उसे बसस्टैंड पर बस की प्रतीक्षा करते देखता था। उसे वह पसंद आ गयी थी पर वह जानता न था कि वह कौन है?उसका क्या नाम है?कहां रहती है?।
एक दिन जब वह काॅलेज जाने को तैयार हो रहा था तो उसके पिता के एक परिचित अपने काम से उसके घर आये थे।उसको काॅलेज जाते देख वो बोले मैं भी उधर ही जा रहा हूं चलो दोनों साथ चलते हैं और दोनों साथ चल दिये। बस स्टैंड पर उन की नज़र उस लड़की पर पडी और वह बोले"अरे रेवा !आज तो तेरी छुट्टी होगी?"।वह उन्हें देखते ही बोली"नमस्ते भैया। आज छुट्टी नहीं है मेरी ,जाना है मुझे"। और वो दोनों आगे बढ़ गये। "आप इसे जानते हैं अंकल?वह बोला। "हां ये मेरे दूर के रिश्ते से मासी की बेटी लगती है। बहुत ही सुशील और संस्कारी है,पर तुम क्यों पूछ रहे हो?"। उससे जवाब देते न बना और वे समझ गये। उन्होनें दोनों के रिश्ते की बात चलाई और शादी तय हो गयी थी।
समय आगे बढ़ चला था। उसके एक प्यारी बेटी भी हो गयी थी।
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रति ,अंधेरे में क्यों बैठी हो? लाइट जलाते हुये उसकी मां ने पूछा और बोली कल तैयार रहना तुझे लड़के वाले देखने आ रहे हैं। "मां मैंने कितनी बार आपसे कहा है मुझे शादी नहीं करनी लेकिन आप और पापा हैं कि समझते ही नहीं"। "तो क्या जीवन भर कुवांरे रहने का इरादा है?क्या करना ,क्या चाहती है तू?इतना गुमसुम रहती है ,न किसी से बोलना ना चालना,न किसी चीज में रुचि"। "मां मैंने भैया से बात कर ली है ,उनकी नौकरी इंदौर में लगी है ,मैं भी उनके साथ रहने जा रही हूं,कम से कम तब तक जबतक उनकी शादी न हो जाती । फिर मैं आपके पास लौट आउंगी "। 
ठीक है चली जा ,मन भी बहल जायेगा फिर जब आना तब बात होगी ,और वह भाई के साथ इंदौर आ गयी।
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सुनिये जरा!रेवा बाथरूम से निकल कर बाल पोछती हुयी बोली"अपने सामने के घर में नये किरायेदार आये हैं। मैंने बालकनी से देखा था।उनके बाथरूम का गीजर सही से काम न कर रहा है ,ऐसा मैंने सुना उनको बात करते।आप तो थोडा़ बहुत जानते हैं ,वो इस शहर में नये हैं ,कहां किसको खोजेंगे,आप जाकर देख लीजिये न "।रेवा बोली
"पर ऐसे पहली बार किसी के घर में गीजर सही करने जाना?खराब तो न लगेगा?"।वह बोला। "अरे नहीं ,इस वक्त उनको जरूरत है और हम काम आयेंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा"।ओके,कहकर वह गया और उनके घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा किसी आदमी ने खोला "जी!आप कौन?"। "जी मैं आपके सामने के घर में रहता हूं। मेरी पत्नी ने सुना कि आपके बाथरूम का गीजर सही से काम न कर रहा ,मैं थोडा़ बहुत जानता हूं,अगर आपको सही लगे तो मैं देखूं या फिर किसी को बुला लाऊं?"।वह बोला। "अरे आइये ,आइये न। वह उसे अंदर ले गया। गीजर में खराबी आ गयी है इसे दुकान पर डलवाना पडेगा ,आप चलें तो दोनों लोग डाल आते हैं ,इससे आप देख भी लेंगे कि वह कहां रहता है,और गीजर सही हो जाने पर उठा लायेंगे। वह बोला। ओके और दोनों गीजर डालने चले गये।
अरे रेवा देखो दरवाजे पर कोई है?वह सुबह अकबार पढ़ते हुये बोला। रेवा दरवाजा खोलने चली गयी और वह अकबार लेकर अंदर चला गया। 
रेवा ने दरवाजा खोला और सामने वाली किरायेदार को देख कर बोली "अरे आप आइये न "। उसको लेकर रेवा अंदर आई । "जी ये आपके लिये खीर लायी हूं ,कल हमारे बाथरूम का गीजर खराब गया था तो आपके पति ने हमारी मदद की तो उसके धन्यवाद के साथ ये खीर"। "अरे इसकी क्या जरूरत थी?रेवा बोली। आइये बैठिये।दोनों बैठक में बैठ गयीं। रेवा चाय नाश्ता लाई ,और दोनों में बातें होने लगीं। 
थोडी देर बाद वह चली गयी। 
वह बाहर आया और पूछा कौन था? रेवा बोली "सामने वाली पडोसन ,धन्यवाद के साथ खीर दे गयीं। 
धीरे धीरे दोनों घुलमिल गयीं। इधर से ये उधर से वह दोनों काम पर चले जाते थे ,दोनों अकेली होतीं । 
फिर जब रविवार पडा़ तो वह रेवा के घर गयी। रेवा ने दरवाजा खोला और उसे बिठाया। "आज मेरे घर आपकी दावत है उसमें आपको आमंत्रित करने आई हूं "।वह बोली। अच्छा!हम जरूर आयेंगे ,रेवा बोली। वह अंदर कुछ काम कर रहा था तो उसने देखा नहीं कि कौन आया है। रेवा ने अचानक कहा "अच्छा मैं आपको अपनी एलबम दिखाऊं?उसमें सबकी फोटो हैं,और वह एलबम ले आई। रेवा उसे एलबम दिखा रही थी। तभी एक फोटो आई और वह चौंक गयी। "अरे !ये तो मैं हूं। मैं आपकी एलबम में कैसे?रेवा चौंकी ये आप हैं? हां । और दूसरी फोटो देखकर दोनों को वह वाकया याद आया ,वह समुद्र,वह घरौंदा, घरौंदा बनाना,उसका पांव मार कर उसका घरौंदा तहसनहस कर पांव पटकते हुये चले जाना। 

चलिये तैयार हो जाइये ,सामने दावत में जाना है,रेवा बेटी को तैयार करते हुये बोली। दोनों दावत में गये। 
वहां पहुंच कर वह पडोसी से बात कर रहा था तभी उसकी बहन आई बोली भैया आपने मेरी पर्स देखीईई,उसकी नज़र उस पर पडी़ और वह अवाक रह गयी, और उसका मन बोल पडा़ ईशान!
ईशान उसको देखते ही एकाएक चौंक सा गया और बोला रति! 
उसके भाई ने उसकी आंखें पढ़ लीं और वह बोला अच्छा तो अब समझा क्यों तुम हर समय गुमसुम रहती थीं,किसी से बात न करती थीं ,क्यों तुम हर बार शादी के आये रिश्ते पर बिफर उठती थीं कि मुझे शादी न करनी। ईशान की आंखें जैसे फैल सी गयीं । वो सोलह साल की उम्र थी ।वह समझता था कि उसे रति से प्यार हो गया है पर बाद में उसे लगा था कि वह तो उस उम्र का आकर्षण मात्र है।और यही सोच कर उसने कहा था कोई नहीं जब रेवा ने पूछा था कि आपके जीवन में कभी कोई रहा तो नहीं।
पर रेवा से जुड़कर भी उसे जैसे लगता था कि कुछ अधूरापन है। वह प्यार को समझ न पाया था!जिसे रति को वह सोलहवें साल का आकर्षण मात्र समझ रहा था वही उसका प्यार थी ,और रेवा जिससे उससे प्यार हो गया वह समझता था वह उसका असल में प्यार थी ही नहीं। वह अपने प्यार को समझ ही न पाया। ये क्या हो गया उससे ?क्यों उसने कभी रति से संपर्क करने का प्रयास न किया?क्यों उसकी प्रतीक्षा न की?
उसने रति की आंखों में देखा,उसकी आंखों में उसे एक ही सवाल नज़र आ रहा था,जैसे उसकी वो रोती आंखें कह रही थीं ,'कहा था,भूल न जाना '। 
रेवा ये सब सुन कर अपना आपा खो बैठी "बचपन में तुमने मेरा घरौंदा तहसनहस कर दिया था ,अब क्या अपने भाई के घर आकर मेरा घर,तहस नहस करने आई हो?
रति रो दी " उसी गलती का शायद मुझे ये सिला मिला कि मेरा प्यार मुझे न मिला। मैं तुम्हारी गृहस्थी बरबाद न करूंगी,मैं कल ही मां,पापा के पास देहरादून चली जाउंगी"।
और वह वहां से भीतर चली गयी रोती हुयी। 
ईशान से वहां खडे़ न हुआ गया ,वह घर लौट आया और कमरे में अंधेरे में बैठ गया। उसकी प्रेम कहानी का अंत उसी के हाथों हो गया था। उसे रहरहकर रति की आंखें याद आ रही थीं जो कह रही थीं----' कहा था,भूल न जाना '।
प्रभा मिश्रा 'नूतन '

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