नई दिल्ली : जिस कोयले की कालिख ने मनमोहन सरकार के किरदार को काला कर दिया था उसी कोयले से आईएएस अफसर अनिल स्वरुप ने सरकार की साख निखारने की कोशिश की है. ईमानदार छवि वाले अनिल स्वरुप ने ना सिर्फ पारदर्शी तरीके से कोयला खदानों की नीलामी की है बल्कि पूरे मंत्रालय को ऑनलाइन करके पारदर्शी बना दिया है. स्वरुप की देखरेख में कोयला मंत्रालय देश का पहला मंत्रालय होगा जहां इस एक नवम्बर से सारा का सारा काम ऑनलाइन होगा. सच तो ये है कि मंत्रालय में अभी से फाइल पर काम बन्द हो चला है.
कैसे इतना बड़ा मंत्रालय पेपरलेस हो गया इसकी मिसाल मुझे आज खुद देखने को मिली. दिल्ली के शास्त्री भवन के तीसरे माले से काम करने वाले कोयला सचिव अनिल स्वरुप से जब मै मिलने गया तो उनसे ईमेल पर ही अपॉइंटमेंट मिला. यही नही अगले ईमेल पर मैंने फ़ोन नंबर, नाम और मुलाकात के समय की जानकारी दी तो उसी पर मुझे रिसेप्शन पर सिक्योरिटी पास भी जारी हो गया. आश्चर्य ये था की मंत्रालय के अफसरों से हर मुलाकात का एक कोड (रिफरेन्स ID) है और ये ID , एसएमएस के ज़रिये आपके मोबाइल फ़ोन पर फ़्लैश होती है.
कैसा होता है सरकार का पेपरलेस दफ्तर ?
नार्थ ब्लॉक हो या साउथ ब्लॉक, ज्यादातर बड़े अफसरों की मेज़ पर फाइलों के पहाड़ दिखते हैं लेकिन अनिल स्वरुप की टेबल से लेकर दफ्तर की अलमारियों पर मुझे कोई फाइल नज़र नही आई. इस पर स्वरूप बोले," सारा काम ऑनलाइन है. और हर आदेश और निर्णेय यहाँ समयबद्ध हैं. मेरे मातहत अधिकारी जो भी कार्रवाई करते है वो टाइम लाइन के अनुसार है. अगर कल 11 बजे तक मंत्रालय को कोई जवाब देना है तो 11 बजे तक जवाब दे दिया जायेगा. आप कागज़ की फाइल पर देर सवेर कर सकते हो पर ऑनलाइन में ये मुमकिन नही. "
लेकिन ऑनलाइन से पारदर्शिता का क्या रिश्ता ?
1981 बैच के आईएएस स्वरूप बताते हैं कि जब इस सरकार में कोल् ब्लॉक ऑक्शन हुए तो कहीं भी विवाद नही था. इस नीलामी से सरकार को आमदनी अलग हुई. दरअसल नीलामी का सारा सिलसिला ऑनलाइन था. साफ है कि कागज़ की फाइल पर होने वाले फैसले और डिजिटल फैसलों में बहुत अंतर है. पर स्वरुप ने पारदर्शिता सिर्फ खदानों की नीलामी में नही बरती. वे बताते हैं कि सरकारी खादानो से निकलने वाले हज़ारों ट्रकों से करोड़ों रूपए का कोयला चोरी होता था. सरकार को इससे काफी नुक्सान पहुँचता था और कोल माफिया को अंधाधुंध कमाई होती थी. स्वरुप ने साल भर में इस अंधेरगर्दी को खत्म कर दिया. वो बताते हैं कि कोयला खदानों से निकलने वाले हर ट्रक में उन्होंने GPS अनिवार्य कर दिया और खदानों के बाहर वीडियोग्राफी भी करवानी शुरू की. कोयले से लदे ट्रकों का सारा मूवमेंट अब नियंत्रण कक्ष में ऑनलाइन मॉनिटर किया जाने लगा. नतीजा ये हुआ की कोयले की तस्करी पर विराम लग गया.
राज्यों की प्रॉब्लम राज्यों में जाकर दूर करने की शुरुआत
समस्या चाहे बिजली उत्पादन से जुडी हो या फैक्ट्री पर पहुँचने वाले कोयले से, ज्यादातर राज्यों की समस्याएँ अब तक दिल्ली के दफ्तर में बैठकर सुलझाने की कोशिश हो रही थी. अनिल स्वरुप ने इस परंपरा को भी तोड़ दिया. उन्होंने कहा की वो खुद दिल्ली से राज्य मुख्यालयों में जाने लगे. अगर झारखण्ड की समस्या थी तो वो अपना लैपटॉप लेकर रांची चले जाते. अगर छत्तीसगढ़ की समस्या थी तो अपने अफसरों के साथ वो रायपुर जाते. अगर किसी खदान पर कोई प्रॉब्लम थी तो वो खदान की साइट पर पहुँचते. स्वरुप इस एक्सरसाइज का फायदा बताते हैं, " आपको ज़मीनी हकीकत पता लगती है जो ऐरकंडीश्नड दफ्तर में पूरी तरह मालूम नही देती. वैसे भी दिल्ली के दफ्तर में इतनी भीड़ जुटती है कि आप डेडिकेटेड होकर एक समस्या पर नही जूझ सकते. मौके पर जाकर मुझे विवाद सुलझाने और फैसला लेने में आसानी होने लगी. यही नही, जॉइंट सेक्रेटरी या अन्य अधिकारी भी समस्या को जड़ से समझने लगते हैं."
भारत को पहली बार बना दिया कोल एफीसियंट, यानी अब विदेश से कोयला लाने की ज़रुरत नही
कोयले के उत्पादन और आपूर्ती को लेकर पहले आये दिन पावर प्लांट बन्द हो जाते थे और इलाके के इलाके अँधेरे में डूबते थे. कोयले के इम्पोर्ट को लेकर अलग धांधलियां होती थीं. अनिल स्वरुप ने कोयला उत्पादन में कारगर कदम उठाए और पहली बार इतना उत्पादन कर डाला की आज देश में कोयला की बिलकुल भी कमी नही है. बल्कि यूं कहे तो कोयला अब सरप्लस है. आज देश में 538 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हो रहा है जबकि पिछली सरकार में यानी 2013-14 में सिर्फ 462 मिलियन टन कोयले का उत्पादन था. स्वरुप समझाते है की उन्होंने उत्पादन कैसे बढ़ाया," हमने सबसे पहले जिन इलाकों में खदाने थीं उसे एक्वायर करना शुरू किया. आपको जानकार आश्चर्य होगा की हमने 5000 हेक्टर इलाके में खदाने अधुगृहीत की. उनके लिए समय पर पर्यावरण और वन की अनुमति ली और साथ ही कोयले की ढुलाई के लिए पर्याप्त रेलवे रैक्स की व्यवस्था की. इतनी बड़ी संख्या में पहले कभी न रेलवे रैक्स आई और ना ही इतने बड़े क्षेत्रफल को अधिग्रहित करके खदान का काम शुरू हुआ."
जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो ये थी कि अनिल स्वरुप खुद से ज्यादा बाकी अफसरों की तारीफ़ करते हैं. अपनी फेसबुक वाल पर भी वो अपनी कथा की जगह देश के नए नए अफसरों के साहसिक और कौशल से भरे फैसले शेयर करते हैं. हौंसला देने वाली दूसरों की उपलब्धियां वो अपने मित्रों से साझा करते हैं." मुझे जो करना था वो मैंने कर दिया ..अब आने वाले युवा अफसरों को और आगे बढ़ाना है. जो अच्छा कर रहे हैं उन्हें देश के लिए आगे बढ़ना चाहिए, " स्वरुप ये कहकर साइड टेबल पर रखे अपने कंप्यूटर की तरफ मुड़े और उन्होंने मॉनिटर ऑन कर दिया.