नई दिल्लीः गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हालात बिगडने पर सिलेंडरों की कथित व्यवस्था कर मीडिया में हीरो बने डॉ. कफील को पद से हटा दिया गया है। उन पर दायित्वों में लापरवाही बरतने के आरोप लगे हैं। बच्चों की तथाकथित रूप से जान बचाने के लिए मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया में डॉ. कफील का काफी महिमामंडन हुआ, मगर बाद में उनका स्याह पहलू भी उजागर हुआ है। पता चला कि वे पहले से विवादों में घिरे रहे हैं। 11 अगस्त को मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन संकट के दिन चंद सिलेंडर लाकर फोटो खिंचाकर बहुत प्रायोजित रूप से मीडिया में हीरो बन गए। जबकि आक्सीजन संकट पैदा करने में खुद उनकी और प्राचार्य की ही कार्यप्रणाली जिम्मेदार रही। परचेजिंग कमेटी में शामिल डॉ. कफील और प्राचार्य ने अगर कमीशन के चक्कर में फर्म का समय से भुगतान किया होता तो न आक्सीजन सप्लाई बाधित होती और न ही इतनी बड़ी घटना होती।
जिस इंसेफ्लाइटिस वार्ड के डॉ. कफील प्रभारी रहे, उसी वार्ड में बेपटरी इलाज सिस्टम के चलते 60 से ज्यादा बच्चों की मौतें हुईं।
फोटो-डॉ. काफिल के प्राइवेट हास्पिटल की जानकारी वाला पत्र
योगी ने लगाई बंद कमरे में पूरे स्टाफ की लगाई क्लास, फटकारा
मेडिकल कॉलेज के सूत्रों ने बताया कि जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मेडिकल कॉलेज पहुंचे तो उन्होंने बंद कमरे में पूरे स्टाफ की क्लास लगाई। डॉ, पूर्णिमा और बाल रोग विभाग की एचओडी से पूछा कि एक दिन में कितने सिलेंडर की जरूरत होती है तो उन्होंने बताया कि 21। इस पर योगी ने डॉ. काफिल से पूछा कि जब 21 सिलेंडर की जरूरत होती है तो फिर तीन सिलेंडर की व्यवस्था करके मीडिया में हीरो बनने चले गए। तुम बाहर कैंपस में फोटो खिंचाने में बिजी रहे, अंदर बाकी साथी चिकित्सक इलाज कर रहे थे। सब फोटो खिंचाने लगेंगे तो इलाज कौन करेगा। सूत्र बताते हैं कि योगी ने फटकारते हुए कहा कि अगर आप लोग जिम्मेदारी से काम किए होते तो ऐसी नौबत ही नहीं आती। क्या पहले से नहीं पता था कि आक्सीजन कम होने वाला है। एक तो खुद संकट पैदा किया और ऊपर से सिलेंडर की फोटो खिंचाकर हीरो बनने की कोशिश की।
इसके बाद योगी के निर्देश पर मेडिकल कॉलेज के डॉ. काफिल को वार्ड प्रभारी पद से हटा दिया गया। प्राचार्य राजीव की कृपा से डॉ. काफिल वाइस प्रिंसिपल की भी जिम्मेदारी निभा रहे थे। इस दायित्व से भी मुक्त कर दिया गया।
जो सिलेंडर काफिल ने लाया, वह कॉलेज का ही था
योगी आदित्यनाथ जब मेडिकल कॉलेज पहुंचे तो उन्हें चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं। बंद कमरे में पूछताछ के दौरान स्टाफ ने बताया कि प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा ने डॉ. काफिल को परचेज कमेटी का मेंबर बनाकर दवा और उपकरणों की खरीदारी की जिम्मेदारी सौंप रखी है। दवाओं की खरीद में कई बार अनियमितता के मामले सामने आ चुके हैं। शिकायत हो चुकी है। जांच से बचने के लिए जब तब डॉ. काफिल बीमारी का बहाना बनाकर गायब हो जाते हैं। जबकि वे निजी हास्पिटल में इलाज करते मिलते हैं। मेडिकल कॉलेज में अगर बैठते भी हैं तो अपने निजी हास्पिटल का मरीजों के बीच प्रमोशन करने के लिए।
स्टाफ ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि सरकारी पैसे से मेडिकल कॉलेज के लिए जो आक्सीजन सिलेंडर खरीदा जाता रहा, उसमें से कई सिलेंडर को काफिल अपने प्राइवेट हास्पिटल में लेजाकर यूज करते रहे। चूंकि प्राचार्य राजीव मिश्रा के करीबी रहे तो कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता था। प्राचार्य, उनकी पत्नी डॉ. पूर्णिमा शुक्ला और डॉ. काफिल की तिकड़ी ने मिलकर मेडिकल कॉलेज को निजी जागीर बना रखा था।
अगर इनके स्तर से भ्रष्टाचार नहीं हुआ होता तो शायद बच्चों को असमय काल के गाल में न समाना पड़ता।
बाकी डॉक्टरों का ध्यान बच्चों की देखभाल में था, लेकिन कफील का ध्यान मीडिया पर था। आखिरकार उन्होंने अपने बारे में झूठी खबरें प्लांट करके खुद को पूरे वाकये का हीरो बनवा ही लिया।
डॉक्साब...फंसे हैं रेप और फर्जीवाड़े में
डॉ. काफिल पर सरकारी नौकरी के साथ प्राइवेट हास्पिटल चलाने का ही मामला नहीं है। उनके दामन पर कई और केस का दाग लगा है। 2009 में मेडिकल कॉलेज की परीक्षा में दूसरे अभ्यर्थी से परीक्षा दिलाने में डॉ. काफिल पर केस चल रहा है। इसके अलावा 15 मार्च 2015 को एक महिला के साथ क्लीनिक पर दुष्कर्म करने का भी मुकदमा झेल रहे हैं।
साथी डॉक्टर लगे थे इलाज में, काफिल खिंचा रहे थे फोटो
एक डॉक्टर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बताया कि जब पूरा स्टाफ मौत से जूझ रहे बच्चों की जिंदगी बचाने में जुटा था, उस वक्त डॉ. काफिल वार्ड की जगह बाहर कैंपस में बच्चों को चेक कर रहे थे। ध्यान इलाज में कम मीडिया वालों से बात करने में ज्यादा था। मकसद था हीरो बनने का। ऐसा साबित कर रहे थे, जैसे कि पूरी व्यवस्था वही चला रहे हों। जबकि बच्चों का इलाज बाहर कैंपस में नहीं, अंदर वार्ड में होता है।
हार्ले डेविडसन की बाइक से चलते हैं डॉक्टर साहब
गोरखपुर के लोग बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज की नौकरी के साथ प्राइवेट प्रैक्टिस करने से खूब पैसा काफिल ने कमाया। जिस गोरखपुर में बहुत कम लोग बुलेट से चलते हैं, वहां वे हार्ले डेविडसन जैसी बाइक से सड़कों पर फर्राटे भरते नजर आते हैं। रईसी में तब से जिंदगी जी रहे हैं, जब से उन्हें गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में दवाओं की खरीद से जुड़ी परचेजिंग कमेटी का मेबर बनाया गया।
नए प्राचार्य को मिली जिम्मेदारी
डॉ. राजीव मिश्रा के निलंबन के बाद शासन ने गोरखपुर मेडिकल कॉलेज की जिम्मेदारी डॉ. पीके सिंह को सौंपी है। डॉ. सिंह फिलहाल राजकीय मेडिकल कॉलेज, अंबेडकरनगर के कार्यवाहक प्राचार्य हैं। अब वे गोरखपुर की भी अतिरिक्त जिम्मेदारी निभाएंगे। अपर मुख्य सचिव ने उनकी तैनाती के आदेश जारी कर दिए हैं।
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