नई दिल्लीः 1986 में बोफोर्स तोप घोटाले के खुलासे में घिरे गांधी परिवार पर फिर मुसीबत आने वाली है। वजह कि इस केस के पिटिशनर अजय कुमार अग्रवाल ने सीबीआई से दोबारा नए सिरे से केस की जांच शुरू करने की मांग की है। उनका कहना है कि यूपीए सरकार में सोनिया ने सीबीआई पर दबाव डलवाकर मामले में लीपापोती कराई। लिहाजा अब सीबीआई को फिर से फाइलें खोलकर केस से जुड़े सभी दोषियों पर सख्त एक्शन करने की जरूरत है। दरअसल संसदीय लोक लेख ा समिति(पीएसी) ने बीते 31 जुलाई को बैठक में बोफोर्स सौदे की गुम हुई फाइलों को खोजने का रक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया।
इस केस का स्टेटस तलब करने पर रक्षा मंत्रालय ने पीएसी को आधी-अधूरी रिपोर्ट मुहैया कराई। जिस पर पीएसी ने मंत्रालय पर नाराजगी जताई थी। अब इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रहे अग्रवाल भी एक्शन में आ गए हैं। उन्होंने सीबीआई मुखिया आलोक वर्मा को आठ पन्ने के भेजे पत्र में कहा है कि देशहित में इस केस का जल्द निपटारा जरूरी है। सच सामने आना जरूरूी है। दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो। ताकि फिर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए कोई नेता, अफसर रक्षा उपकरणों की खरीद में घोटाले का दुस्साहस न कर सके।
अग्रवाल ने उठाए सवाल
1-जब आर्मी अफसरों ने फ्रैंच गन कंपनी ओफमा की तोपें खरीदने को हरी झंडी दी थी तो फिर बोफोर्स कंपनी से क्यों हुआ सौदा 2-जब ओफमा की गन्स की रेंज 29 किमी थी तो फिर 21 किमी रेंज की बोफोर्स तोपों की खरीद क्यों 3-जब ओफपा की तोपों सस्तीं मिल रहीं थीं तो महंगे दर पर बोफोर्स का सोदा क्यों हुआ 4-जब ओफमा कंपनी ने अपनी टेक्नोलॉजी भी भारत को देकर यहां कंपनी लगाने की सहूलियत की बात कही थी फिर बोफोर्स पर मेहरबानी क्यों
5-जब ओफमा ने तोप के साथ बारूद भी देने की सुविधा दी थी तो फिर सिर्फ तोप देने वाली कंपनी बोफोर्स से क्यों हुई सौदेबाजी
इंडिया संवाद से बातचीत में याची अग्रवाल का कहना है कि अगर राजीव गांधी सरकार फ्रैंच कंपनी ओफमा से तोपें खरीदती तो न केवल सस्ता पड़ता बल्कि कई तरफ से लाभ होता। बावजूद इसके सोनिया गांधी के देश इटली की कंपनी से सोदेबाजी करने से साफ पता चलता है कि गांधी परिवार ने इस सौदेबाजी में गहरी रुचि ली। इससे दलाली के रूप में बड़ा पैसा खाया गया। गांधी परिवार की संलिप्तता साफ पता चलती है।
सोनिया गांधी ने निकलवाया क्वात्रोची का फंसा पैसा
अजय कुमार अग्रवाल का कहना है कि सीबीआई ने बोफोर्स सोदेबाजी में घूसखोरी की बात सामने आऩे पर 2003 में डीलर क्वात्रोची के लंदन के दो खाते फ्रीज करा दिए थे। ये खाते एजी बैंक लंदन में चल रहे थे। एक खाता 5ए5151516एम संख्या से और दूसरा खाता नंबर था 5ए5151516ए। दोनों बैंक खाते इटली के हथियार दलाल क्वात्रोची और उसकी पत्नी मारिया के थे। मगर 11-12 जनवरी की मध्य रात्रि खबर आती है कि खाते भारत सरकार की अनुमति से डिफ्रीज करा दिए। जिससे पल भर में ही दलाल ने रिश्वत के 30 करोड़ निकालकर ठिकाने लगा दिए। लिहाजा सीबीआई को इस खाते से पैसा कहां भेजा गया, इसकी जांच जरूरी है। आखिर किस वजह से यूपीए सरकार ने दलाल के खाते पर लगी रोक हटवाई। इससे साफ अंदेशा है कि सोनिया गांधी और सरकार के तमाम जिम्मेदारों के पास भी इसका हिस्सा पहुंचा होगा। यह बड़ी जांच का विषय है।
'सीबीआई एक्शन ले, मैं दूंगा दस्तावेज सुबूत'
पिटीशनर अजय कुमार अग्रवाल कहते हैं कि बोफोर्स केस से संबंधित तीस हजार कोर्ट से जुड़े तमाम दस्तावेज उनके पास हैं। सीबीआई केस की छानबीन दोबारा शुरू करे तो वह हर तरह से सहयोग करने को तैयार हैं। हर जरूरी दस्तावेजी प्रमाण भी उपलब्ध कराएंगे।
अग्रवाल के मुताबिक 2005 से मैं इस केस को लड़ता आ रहा हूं। सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर 2005 को इस केस की मेरी रिट स्वीकार की। यह केस क्रमिनल अपील नंबर 1369-1375 के रूप में स्वीकार हुआ। इस बीच जनवरी 2006 में खबर आती है कि केंद्र की ओर से एडिशनल सालिसिटर जनरल को लंदन भेजकर क्वात्रोची के खाते डिफ्रीज करा दिए जाते हैं। और पैसे निकालने की अनुमति दे दी जाती है। अग्रवाल का कहना है कि घोटाले में राजीव गांधी क्वात्रोची, विन चड्ढा और हिंदुजा ब्रदर्स और सेना के सीनियर अफसरों की संलिप्तता के ढेरों प्रमाण हैं। कांग्रेस सरकार ने 1986 से 2006 तक इस केस को रफा-दफा करने की कोशिश की। यह देश के साथ अपराध है।
अग्रवाल के मुताबिक 31 मार्च 2005 को दिल्ली हाई कोर्ट के हिंदुजा ब्रदर्स पर आरोप खारिज करने को लेकर दिए फैसले के खिलाफ यूपीए सरकार ने सीबीआई को एसएलपी की अनुमति नहीं दी। यहां तक कि अमेरिकी एजेंसी सीआईए की 1988 की रिपोर्ट कहती है कि बोफोर्स सौदेबाजी में घूस का पैसा दलाल के जरिए भारत सरकार के जिम्मेदारों तक पहुंचा।