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कथा

hindi articles, stories and books related to katha


देवि, अब तो कटें बंधन पाप के लाइए, मैं चरण चूमूँ आपके जिद निभाई, डग बढ़ाए नाप के लाइए, मैं चरण चूमूँ आपके सौ नमूने बने इनकी छाप के लाइए, मैं चरण चूमूँ आपके किए पूरे सभी सपने बाप के लाइए,

क्या हुआ आपको? क्या हुआ आपको? सत्ता की मस्ती में भूल गई बाप को? इन्दु जी, इन्दु जी, क्या हुआ आपको? बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को! क्या हुआ आपको? क्या हुआ आपको? आपकी चाल-ढाल देख- देख लोग

तुमसे क्या झगड़ा है हमने तो रगड़ा है-- इनको भी, उनको भी, उनको भी ! दोस्त है, दुश्मन है ख़ास है, कामन है छाँटो भी, मीजो भी, धुनको भी लँगड़ा सवार क्या बनना अचार क्या सनको भी, अकड़ो भी, तुनको

अभी-अभी हटी है मुसीबत के काले बादलों की छाया अभी-अभी आ गयी-- रिझाने, दमित इच्छाओं की रंगीन माया लगता है कि अभी-अभी ज़रा-सी गफ़लत में होगा चौपट किया-कराया ठिकाने तलाश रही है चाटुकारों की भीड़

लहरों की थाप है मन के मृदंग पर बेतवा-किनारे गीतों में फुसफुस है गीत के संग पर बेतवा-किनारे क्या कहूँ, क्या कहूँ पिकनिक के रंग पर बेतवा-किनारे मालिश फ़िज़ूल है पुलकित अंग-अंग पर बेतवा-किनारे लह

बदली के बाद खिल पड़ी धूप बेतवा किनारे सलोनी सर्दी का निखरा है रूप बेतवा किनारे रग-रग में धड़कन, वाणी है चूप बेतवा किनारे सब कुछ भरा-भरा, रंक है भूप बेतवा किनारे बदली के बाद खिल पड़ी धूप बेतवा

बातें– हँसी में धुली हुईं सौजन्य चंदन में बसी हुई बातें– चितवन में घुली हुईं व्यंग्य-बंधन में कसी हुईं बातें– उसाँस में झुलसीं रोष की आँच में तली हुईं बातें– चुहल में हुलसीं नेह–साँचे में ढ

प्रभु तुम कर दो वमन ! होगा मेरी क्षुधा का शमन !! स्वीकृति हो करुणामय, अजीर्ण अन्न भोजी अपंगो का नमन ! आते रहे यों ही यम की जम्हायियों के झोंके होने न पाए हरा यह चमन प्रभु तुम कर दो वमन ! मार द

पेट-पेट में आग लगी है, घर-घर में है फाका यह भी भारी चमत्कार है, काँग्रेसी महिमा का सूखी आँतों की ऐंठन का, हमने सुना धमाका यह भी भारी चमत्कार है, काँग्रेसी महिमा का महज विधानसभा तक सीमित है, जन

दो हज़ार मन गेहूँ आया दस गाँवों के नाम राधे चक्कर लगा काटने, सुबह हो गई शाम सौदा पटा बड़ी मुश्किल से, पिघले नेताराम पूजा पाकर साध गये चुप्पी हाकिम-हुक्काम भारत-सेवक जी को था अपनी सेवा से काम

अभी कल तक गालियॉं देती तुम्‍हें हताश खेतिहर, अभी कल तक धूल में नहाते थे गोरैयों के झुंड, अभी कल तक पथराई हुई थी धनहर खेतों की माटी, अभी कल तक धरती की कोख में दुबके पेड़ थे मेंढक, अभी कल तक

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम मैं उनको करता हूँ प्रणाम । कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट जिनके अभिमंत्रित तीर हुए; रण की समाप्ति के पहले ही जो वीर रिक्त तूणीर हुए ! उनको प्रणाम ! जो छोटी–सी नैया

बजरंगी हूँ नहीं कि निज उर चीर तुम्हें दरसाऊँ ! रस-वस का लवलेश नहीं है, नाहक ही क्यों तरसाऊँ ? सूख गया है हिया किसी को किस प्रकार सरसाऊँ ? तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ? नभ के तारे तोड़

जिनके बूटों से कीलित है, भारत माँ की छाती जिनके दीपों में जलती है, तरुण आँत की बाती ताज़ा मुंडों से करते हैं, जो पिशाच का पूजन है अस जिनके कानों को, बच्चों का कल-कूजन जिन्हें अँगूठा दिखा-दिखाक

मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को, डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को ! जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा ! सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा ! जन-गण-मन अधिनायक जय

गोर्की मखीम! श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम! घुल चुकी है तुम्हारी आशीष एशियाई माहौल में दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम । अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम ।

उषा की लाली में अभी से गए निखर हिमगिरि के कनक शिखर ! आगे बढ़ा शिशु रवि बदली छवि, बदली छवि देखता रह गया अपलक कवि डर था, प्रतिपल अपरूप यह जादुई आभा जाए ना बिखर, जाए ना बिखर... उषा की लाली म

जिनके बूटों से कीलित है, भारत माँ की छाती जिनके दीपों में जलती है, तरुण आँत की बाती ताज़ा मुंडों से करते हैं, जो पिशाच का पूजन है अस जिनके कानों को, बच्चों का कल-कूजन जिन्हें अँगूठा दिखा-दिखाक

भुक्खड़ के हाथों में यह बन्दूक कहाँ से आई एस० डी० ओ० की गुड़िया बीबी सपने में घिघियाई बच्चे जागे, नौकर जागा, आया आई पास साहेब थे बाहर, घर में बीमार पड़ी थी सास नौकर ने समझाया, नाहक ही दर गई हु

पेट-पेट में आग लगी है, घर-घर में है फाका यह भी भारी चमत्कार है, काँग्रेसी महिमा का सूखी आँतों की ऐंठन का, हमने सुना धमाका यह भी भारी चमत्कार है, काँग्रेसी महिमा का महज विधानसभा तक सीमित है, जन

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