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सच न बोलना / नागार्जुन

21 अप्रैल 2023

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मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,
डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को !
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा !
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा !

जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है
भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है !
बन्द सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे
जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे ।

ख़याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,
फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका !
बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे !
भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे !

ज़मींदार है, साहूकार है, बनिया है, व्योपारी है,
अन्दर-अन्दर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है !
सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मन्दिर
एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर !

छुट्टा घूमें डाकू गुण्डे, छुट्टा घूमें हत्यारे,
देखो, हण्टर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे !
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,
काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा !

माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं !
बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं !
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,
ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है !

रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुँह पर लाएगा,
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा !
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,
जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहाँ कहीं !

सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुँचो, मेवा-मिसरी पाओगे !
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का ! 

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

अद्वितीय व्यंग्य बाण

31 अगस्त 2024

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रचनाएँ
हज़ार-हज़ार बाहों वाली
5.0
नागार्जुन द्वारा रचित हज़ार-हज़ार बाहों वाली का काव्य संकलन।
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भारतीय जनकवि का प्रणाम / नागार्जुन

21 अप्रैल 2023
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गोर्की मखीम! श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम! घुल चुकी है तुम्हारी आशीष एशियाई माहौल में दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम । अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम ।

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सच न बोलना / नागार्जुन

21 अप्रैल 2023
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मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को, डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को ! जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा ! सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा ! जन-गण-मन अधिनायक जय

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पुलिस अफ़सर / नागार्जुन

21 अप्रैल 2023
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जिनके बूटों से कीलित है, भारत माँ की छाती जिनके दीपों में जलती है, तरुण आँत की बाती ताज़ा मुंडों से करते हैं, जो पिशाच का पूजन है अस जिनके कानों को, बच्चों का कल-कूजन जिन्हें अँगूठा दिखा-दिखाक

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मैं कैसे अमरित बरसाऊँ / नागार्जुन

21 अप्रैल 2023
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बजरंगी हूँ नहीं कि निज उर चीर तुम्हें दरसाऊँ ! रस-वस का लवलेश नहीं है, नाहक ही क्यों तरसाऊँ ? सूख गया है हिया किसी को किस प्रकार सरसाऊँ ? तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ? नभ के तारे तोड़

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उनको प्रणाम / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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जो नहीं हो सके पूर्ण–काम मैं उनको करता हूँ प्रणाम । कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट जिनके अभिमंत्रित तीर हुए; रण की समाप्ति के पहले ही जो वीर रिक्त तूणीर हुए ! उनको प्रणाम ! जो छोटी–सी नैया

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कल और आज / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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अभी कल तक गालियॉं देती तुम्‍हें हताश खेतिहर, अभी कल तक धूल में नहाते थे गोरैयों के झुंड, अभी कल तक पथराई हुई थी धनहर खेतों की माटी, अभी कल तक धरती की कोख में दुबके पेड़ थे मेंढक, अभी कल तक

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नया तरीका / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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दो हज़ार मन गेहूँ आया दस गाँवों के नाम राधे चक्कर लगा काटने, सुबह हो गई शाम सौदा पटा बड़ी मुश्किल से, पिघले नेताराम पूजा पाकर साध गये चुप्पी हाकिम-हुक्काम भारत-सेवक जी को था अपनी सेवा से काम

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चमत्कार / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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पेट-पेट में आग लगी है, घर-घर में है फाका यह भी भारी चमत्कार है, काँग्रेसी महिमा का सूखी आँतों की ऐंठन का, हमने सुना धमाका यह भी भारी चमत्कार है, काँग्रेसी महिमा का महज विधानसभा तक सीमित है, जन

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कर दो वमन ! / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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प्रभु तुम कर दो वमन ! होगा मेरी क्षुधा का शमन !! स्वीकृति हो करुणामय, अजीर्ण अन्न भोजी अपंगो का नमन ! आते रहे यों ही यम की जम्हायियों के झोंके होने न पाए हरा यह चमन प्रभु तुम कर दो वमन ! मार द

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बातें / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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बातें– हँसी में धुली हुईं सौजन्य चंदन में बसी हुई बातें– चितवन में घुली हुईं व्यंग्य-बंधन में कसी हुईं बातें– उसाँस में झुलसीं रोष की आँच में तली हुईं बातें– चुहल में हुलसीं नेह–साँचे में ढ

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बेतवा किनारे-1 / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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बदली के बाद खिल पड़ी धूप बेतवा किनारे सलोनी सर्दी का निखरा है रूप बेतवा किनारे रग-रग में धड़कन, वाणी है चूप बेतवा किनारे सब कुछ भरा-भरा, रंक है भूप बेतवा किनारे बदली के बाद खिल पड़ी धूप बेतवा

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बेतवा किनारे-2 / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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लहरों की थाप है मन के मृदंग पर बेतवा-किनारे गीतों में फुसफुस है गीत के संग पर बेतवा-किनारे क्या कहूँ, क्या कहूँ पिकनिक के रंग पर बेतवा-किनारे मालिश फ़िज़ूल है पुलकित अंग-अंग पर बेतवा-किनारे लह

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अभी-अभी हटी है / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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अभी-अभी हटी है मुसीबत के काले बादलों की छाया अभी-अभी आ गयी-- रिझाने, दमित इच्छाओं की रंगीन माया लगता है कि अभी-अभी ज़रा-सी गफ़लत में होगा चौपट किया-कराया ठिकाने तलाश रही है चाटुकारों की भीड़

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हमने तो रगड़ा है / नागार्जुन

22 अप्रैल 2023
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तुमसे क्या झगड़ा है हमने तो रगड़ा है-- इनको भी, उनको भी, उनको भी ! दोस्त है, दुश्मन है ख़ास है, कामन है छाँटो भी, मीजो भी, धुनको भी लँगड़ा सवार क्या बनना अचार क्या सनको भी, अकड़ो भी, तुनको

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