मेरी इच्छा है कि मैं उसे जहर दे दूँ.
जो शांति अमन भंग करे उसे कहर दे दूँ.
भोर जिंदगी ही छीनता जो निर्दयी बन कर--
उसको तपती हुई जेठ की दोपहर दे दूँ.
हद करके दरिंदगी की जो घूमे शान से--
उसको सूनामी की चक्रवाती लहर दे दूँ..
कहता है शहर नेरा जलाता है बनकर चिराग--
कैसे मै उसको ''निर्झर'' अपना शहर दे दूँ.
-----निर्झर आजमगढ़ी