जमाने के थपेड़ों को कभी जो सह नहीं सकता.
समय सागर की धारा में निरंतर बह नहीं सकता.
नहीं जज्बा हो जिसमें मुश्किलों को मात देने की--
करे वह लाख कोशिश फिर भी सुख से रह नहीं सकता.
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अदय आतंक भ्रष्टाचार का सन्हार करना है.
लिखे सच लेख नी निर्भीक पैनी धार करना है.
भले बरसे अंगारा नभ से बादल आग बन पथ में---
हमें उस आग की दरिया को हँस कर पार करना है.
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बार-बार ठगे गये हो फिर भी असर नहीं होता.
क्या बिना उनके अब तुम्हारा बसर नहीं होता.
मैं पूछता हूँ आप सभी से बताइये सोच कर--
केंचुक उतार द्र्ने से क्या साँप विषधर नहीं होता.
--------निर्झर आजमगढ़ी