विष भरे स्वर्ण के घत सा जो, पहने सुंदर परिधान.
--------------------------बचाना उनसे हे भगवान.
छल कपट कुटिल का भाव मृदुल,
-------------वाणी में घोले कहता.
बनकर रखवाला शुभ चिंतक,
----------फिर खेत अभय हो चरता.
आतंक अपहरण घोटाला ही, हो जिसकी पहचान.
--------------------------बचाना उनसे हे भगवान.
जो रोजी रोजगार देने का,
------मनहर स्व्प्न दिखाता.
जाल फेंक मछुवारे सा,
सबको सस्मित उलझाता.
मुद बेंच रहा है खुले आम्जो, धरम और ईमान.
--------------------------बचाना उनसे हे भगवान.
जाति-पाँति रिश्ते नाते का,
-----जहर घोलता लोंगो में.
सत्ता प्रभुसत्ता के कुचक्र का,
--------सूत्र खोजता लोंगो में.
जो जन कल्याण योजनाओ की, खोले हो दूकान.
--------------------------बचाना उनसे हे भगवान.
अस्मत और अस्मिता का नित,
---------लूट रहा जो आभूषण.
जन-जन के मन में भर विकार,
-----------फैलाता भ्रष्ट प्रदूषण.
सारा कुकृत्य करने पर भी, खुद को कहता इंशान.
--------------------------बचाना उनसे हे भगवान.
------निर्झर आजमगढ़ी