कविता
प्रज्ज्वलित अखण्ड दीप , अपने को बनाना होगा.
घर में घिरे अँधेरे को, फिर चलके मिटाना होगा.
-----कलुषित मन का विचार-,
----छाया है अँधेरा बन कर.
----क्रोधित ईर्ष्या द्वेष---
-----सामने खड़ा हुआ तनकर.
उर से मिटा कर इसको, स्नेह दीपक जलाना होगा.
घर में घिरे अँधेरे को, फिर चलके मि