दर्पण टूटा,
टुकड़ा बिखरा--
सबने देखा.
पर हृद का टुकड़ा--
कौन देखता. साक्षी देकर सौगंध लिया-
जीवन भर साथ निभाने का.
हर व्यथा झेल आँसू पीकर--
संग जीने का मर जाने का.
पतझड़ में झरा,
हरित उपवन-
सबने देखा.
उजड़ा हिय-उपवन-
कौन देखता.
तड़पन की पीड़ा सस्मित पी-
होंठों को देकर मधुर गीत.
भव बंधन का खण्डन करके-
नित उन्नत होती थी वह प्रीत.
घट माटी का,
अवनी पसरा--
सबने देखा.
टूट गया विश्वास घड़ा,
कौन देखता.
कोयल सी किलकारी पाकर-
झंकृत होता था घर आँगन.
बिंदिया में दिन का तेज पुंज-
नयनों मे था निशि का आँजन.
नभ कुपित हो,
सावन पर बिफरा-
सबने देखा.
झुलसे उर का दुखड़ा-
कौन देखता. -------निर्झर आजमगढ़ी