नई दिल्ली: हमारे देश का संविधान कहता है कि हमारे राष्ट्रगान के मूल रूप से किसी भी प्रकार की छेड़ छाड़ नहीं की जा सकती। लेकिन केंद्र सलरकार की विभिन्न वेबसाइटों पर हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा में पढ़ाया जा रहा राष्ट्रगान शाब्दिक रूप से सही नहीं है। भारतीय संस्कृति के बारे में बताने वाली कई वेबसाइटों पर दिखाए गए राष्ट्रगान के स्वरूप में शब्दों की कई गलतियां हैं। यह गलतियां मामूली तो बिल्कुल नहीं बल्कि संविधानकि आइन में इसे देखा जाए तो यह अक्षम्य है और इसके लिए क़ानूनन सज़ा का भी प्रावधान हैं।
ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार को इन सरकारी वेबसाइटों पर राष्ट्रगान में शाब्दिक त्रुटियां होने की जानकारी नहीं। हालांकि केंद्र सरकार के सं ज्ञान में है। गृह मंत्रालय ने भी गलती को स्वीकार करते हुए शिकायतकर्ता को राष्ट्रगान के गसलत स्वरूप को सही करने का आश्वासन तक दिया, मगर स्थिति जस की तस है। न तो कुछ सुधार हुआ और नहीं किसी तरह की गुंजाईश है। हालांकि सरकारी वेबसाइटों में हिंदी औऱ अंग्रेजी भाषा के राष्ट्रगान मं मौजूद हैं कई शाब्दिक त्रुटियां।
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान के संबंध में 11 साल पहले सुनाया था यह फ़ैसला
भारत के राष्ट्रगान में सिंधु शब्द को हटाने की मांग को लेकर संजीव भटनागर की याचिका को ख़ारिज करते हुए 13 मई 2005 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी का कहना था कि संविधान द्वारा तय राष्ट्रगान के मूल स्वरूप में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा किसी के द्वारा किया जाता है तो यह अपराध है। अगर कोई इस अपराध को जानबूझ कर करता है तो यह अक्षम्य है। राष्ट्रगान को उसके संविधान द्वारा तय मूल स्वरूप में ही गाया या दर्शाया जाना चाहिए। यह टिप्पणी देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 10 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया था और कहा था कि यह इसलिए लगाया जा रहा है ताकि दोबारा कोई इस तरह की गलती न करे।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि संविधान के तहत प्रीवेंशन आफ इंसल्ट टू नेशनल आनर एक्ट का सेक्शन 3 कहता है कि कोई राष्ट्रगान के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ करता है तो इसे राष्ट्रगान का अनादार माना जाएगा। दोषी साबित होने पर तीन साल की क़ैद और जुर्माने की सज़ा का भी प्रावधान है।
गलतियां नहीं गुनाह है यह
दरअसल राष्ट्रीय प्रतीकों पर काम करने वाले सोशल एक्टि्स्ट उल्हास पाीआर ने बताया कि केंद्र सरकार की वेबसाइट आरकाइव इंडिया डॉट जीओवी डॉट इन और केएनओडब्ल्यू इंडिया डॉट जीओवी डॉट इन समेत विभिन्न वेबसाइटों पर भारत के राष्ट्रगान के हिंदी और अंग्रेजी संस्करण दिए गए हैं। इसमें इसे गाने के लिए संविधान द्वार तय दिशा-निर्देशों का भी ज़िक्र है। इन वेबसाइटों पर हिंदी में राष्ट्रगान का जो स्वरूप दिया है, उसमें पंजाब-सिंध-गुजरात-मराठा की जगह पंजाब-सिंधु-गुजरात-मराठा अंकित है। अंग्रेजी वर्जन में तो भारी शाब्दिक त्रुटियां हैं। उसमें पंजाब को पंजाबा, सिंध को सिंधु, गुजरात को गुजराता, भारत को भारता, अधिनायक को अधिनायका, उत्कल को उत्कला, द्राविड़ को द्राविड़ को द्राविड़ा, बंग को बंगा, तरंग को तरंगा, शुभ को शुभा, मंगल को मंगला और दायक को दयाका लिखा गया है। उन्होंने इस संबंध में गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को 22 मार्च को शिकायत की थी। जिस पर उन्हें गृह मंत्रालय की ओर से 10 अगस्त को पत्र मिला कि उनकी शिक़ायत को संज्ञान लिया गया है। इस पर जल्द ही कार्रवाई की जाएगी। उल्हास पीआर ने बताया कि उसके बाद भी सरकारी वेबसाइटों पर राष्ट्रगान के त्रुटिपूर्ण वर्जन मे कोई सुधार नहीं हुआ है। गृह मंत्रालय से कई बार की जा चुकी हैं शिक़ायतें मगर नहीं सुधारी गई त्रुटियां।