हरिद्वार : उत्तराखंड में एक बार फिर एक नई सरकार चुनने का वक़्त आ गया है। आज तक उत्तराखंड में जब भी सरकार बदली 70 बरस के स्वामी शिवानंद की आस यह सोचकर जगी कि अपने आस्तित्व के लिए लड़ रही गंगा पर नई सरकार रहम करेगी। लेकिन आजतक ऐसा हुआ नही। साल 2002 के बाद बीजेपी और कांग्रेस की सरकारें उत्तराखंड में आती गई और कुम्भ नगरी हरिद्वार में खनन का 'माफियाराज' फलता-फूलता गया।
कैसे हुई खनन के खिलाफ लड़ाई शुरू
उत्तराखंड में एक बार फिर 15 फ़रवरी को विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन स्वामी शिवानंद जरा भी आशान्वित नही लगते। ऑगर्गेनिक केमिस्ट्री की डिग्री रखने वाले वाले स्वामी शिवानंद की पूरी लड़ाई कुम्भ नगरी को बचाने की है। इसी मकसद से 1997 में मातृसदन की स्थापना की गई। हरिद्वार में खनन के खिलाफ मातृसदन की लड़ाई तब से शुरू जब 1998 का कुम्भ हरिद्वार में हुआ। उस वक़्त कई द्वीपों को खोदा गया और द्वीप के समतलीकरण के नाम पर करोड़ों का आबंटन हुआ लेकिन कुम्भ क्षेत्र को उससे कम रॉयल्टी मिली।
1998 के बाद भी कुम्भ क्षेत्र में खनन का काम चालू रखा गया और इसका काम एक शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा को दे दिया गया। इस पर संत समाज के रुख को देखते हुए तत्कालीन डीएम ने आराधना शुक्ल ने एक जांच कमेटी बिठाई। जिसमे यह बात साफ़ हो गई कि खनन के नाम पर हरिद्वार में द्वीपों को नष्ट किया जा रहा है। जिसके बाद कुम्भ क्षेत्र में खनन पर रोक लगाई गई साथ ही इस कारोबारी ग्रुप को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया। स्वामी शिवानन्द कहते हैं कि इस आदेश के बाद भी माफियाओं और भ्रष्ट अधिकारियों ने एक और चाल चली, उन्होंने कुम्भ क्षेत्र का दायरा ही घटा दिया।
निशंक के रहते स्वामी निगमानंद की माफियाओं ने हत्या की
सरकारों की भूमिका पर सवाल पूछे जाने पर स्वामी शिवानंद कहते हैं की ''निशंक के सीएम रहते खनन के खिलाफ आंदोलनरत स्वामी निगमानंद की हत्या की गई और मौजूद सीएम हरीश रावत को लेकर स्वामी शिवानंद कहते हैं कि ''मैं उनको सत-सत नमन करता हूँ। ऐसा विश्वासघाती व्यक्ति दुनिया में हो ही नही सकता''। स्वामी शिवनाद के सामने जब सरकार के इस तथ्य को रखा गया कि गंगा पर बन रहे पावर प्रोजेक्ट विकास के लिए जरूरी हैं, इस पर उनका कहना है कि ''भौतिक संसाधनों को जुटा लें, क्या वही विकास है? मातृसत्ता को नष्ट कर लें''।
बाबा रामदेव को लेकर उनसे ही पूछिए
जब स्वामी शिवानंद से पूछा गया कि सत्ता से इतने अच्छे सम्बन्ध रखने वाले बाबा रामदेव ने कभी खनन के खिलाफ आवाज क्यों नही उठाई ? इस पर स्वामी ने साफ लफ्जों में कहा कि इसका जवाब आप उनसे ही पूछिए कि वह खनन के खिलाफ आवाज क्यों नही उठाते। उन्होंने कहा जो सिद्धान्त का पालन करते हैं हम उनके साथ हैं और जो सिद्धान्त का पालन नही करते हम उनके साथ नही हैं। संतों की भूमिका को लेकर स्वामी शिनानाद कहते हैं कि यह भारत वर्ष का दुर्भाग्य है कि ''पहले जिस साधू को त्याग और तपस्या का प्रतीमूत्रि समझा जाता था आज वह आलिशान बिल्डिंग में रहते हैं और लग्जीरियस गाड़ियों में घूमते हैं।