मै ख्याल मुझ पर किसी बंधन का जोर नहीं
मै ना ठहरू मेरा कोई छौर नहीं
मै सागर सा गहरा
लहरों सा मनचला
मै कहीं कब ठहरा
हवाओं में खुशबू सा महकता
हर दिल में मचलता
ना बंधन का मुझ पर जोर
ना मेरा कोई ठौर
मै इश्क की रवानी
चाहत की मै कहानी
शायर के अल्फाजों में मैं रहता
जज्बातों को मै बुनता
बिन मेरे ना रह पाए
बिन मेरे ख्वाब ना सज पाए
बंधन का ना मुझ पर कोई ज़ोर
ना मेरा कोई छौर
ना मेरा कोई ठौर
रस्मों को अहसास में जताया जाता
शब्दों में मुझे पिरोया जाता
कविता में ढल जाऊं
मै स्वतंत्र सा बंधन में ना बांध पाऊं
मै राही मै ही राह
मै मंजिल मै ही मंजिल की चाह
मेरा मै ही आशियाना
काम मेरा तो बहते रहना
ना मेरा अंत ना अंजाम
निरंतर चलता नहीं मुझे विराम
ना बंधन में बंध पाऊं
ना मेरा कोई ठौर
मै ख्याल ना मुझ पर किसी का जोर