नई दिल्ली : सबसे ज़्यादा एलीट क्लास की रिहायश वाले मगर सबसे कम वोटिंग के लिए बदनाम नोएडा में भी इस बार मतदान ज़्यादा हुआ. पिछली बार जहाँ सिर्फ 48 प्रतिशत था इस बार आँकड़ा 50 पार कर 51 तक पहुँचा. यह महज़ बानगी है. पश्चिम यूपी की जिन 73 सीटों पर शनिवार को मतदान हुआ, हर जगह इस बार औसतन पाँच फ़ीसद मतदान प्रतिशत बढ़ा. नोएडा, दादरी, कैराना, बागपत, अलीगढ समेत सभी सीटों पर यही हाल रहा.
इस बार बढ़े मतदान प्रतिशत पर सभी की निगाह टिकी है. किस पार्टी के खाते में ये वोट जाएँगे इसको लेकर राजनीति क पंडित गुणा गणित करने में जुटे हैं. माना जा रहा है कि इस बार बदली राजनीतिक परिस्थितियों के चलते उन्होंने भी मतदान किया जो पहले पोलिंग के दिन छुट्टी मनाया करते थे. भाजपा इसके पीछे एंटी इन्कमबैंसी फ़ैक्टर बता रही.
2012 में 59 प्रतिशत हुआ था मतदान
पिछले चुनाव में संबंधित 15 जिलों की 73 सीटों पर 59.34 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार आँकड़ा बढ़कर 64 प्रतिशत हो गया. आगरा की फ़तेहपुर सीकरी सीट पर पहले फ़ेज़ में सबसे ज़्यादा 71 प्रतिशत मतदान हुआ. 2012 के चुनाव में भी यहाँ के मतदाता फ़र्स्ट क्लास पास हुए थे. इस सीट पर तब भी 66 प्रतिशत की अच्छी पोलिंग हुई थी. इसी तरह मुज़फ़्फ़रनगर, शामली, बागपत आदि जिलों की सीटों पर भी औसतन चार से पाँच फ़ीसद मतदान प्रतिशत बढ़ा
बढ़े वोटों पर हर कोई जता रहा हक़
इस बार बढ़े पाँच प्रतिशत वोटों पर हर राजनीतिक दल अपना दावा कर रहा है. जाटलैंड यानी जाटबाहुल्य सीटों पर बढ़े वोटों को भाजपा अपना मान रही है. पार्टी नेताओं का कहना है कि जाटों के खाप धड़े में भाजपा की पकड़ है.
ग़ैर खाप जाट ही रालोद या अन्य दलों में बँट सकते हैं. उधर सपा- कांग्रेस गठबंधन नेताओं का कहना कि हरियाणा में बिरादरी के साथ भाजपा की वादाखिलाफी से जाटों में नाराज़गी है. जिससे उन्होंने पहले फ़ेज़ में भाजपा के ख़िलाफ़ वोट किया. जबकि रालोद का दावा है कि उनकी इकलौती पार्टी ही जाटों के हकोकुकूक के लिए लड़ती आई है. लिहाज़ा बढ़े वोट उसके खाते में जाएँगे