लखनऊ: वर्तमान में सर्वाधिक आय वाला व्यापार देखा जाये तो व्यापारिक दृष्टिकोण से शिक्षण संस्थाएं सर्वोपरि है।
अभी ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रो को छोड़ दे तो हर जगह जन्म लेने के 5-6 माह पश्चात ही बच्चों को शिशु संस्थाओं में डाल दिया जाता है जहाँ बच्चे की पूरी देखभाल के साथ साथ उसकी शिक्षाये भी आरम्भ कर दी जाती है।यद्यपि शहरों में नौकरी शुदा महिलाओं के लिए ऐसा करना अनिवार्य हो जाता है,पर आधुनिक वातावरण में रहने वाली महिलाएं भी अपने नवजात बच्चों को ऐसी संस्थाओं में पालती है।माँ बाप का पर्याप्त प्यार न मिलने के कारण ऐसे ही बच्चे बड़े होकर माँ बाप के प्रति सहानभूति नही रख पाते है।
ऐसी बाल संस्थाये भी बच्चों के नाम पर माँ बाप से मोटी रकम ऐंठती है।यही हाल नर्सरी और प्राइमरी स्कूलों का होता है। दाखिले के लिए फार्म ,परीक्षा ,प्रवेश , शिक्षा ,पंखा शुल्क और न जाने क्या क्या शुल्क के नाम पर हज़ारो रुपए प्रति माह वसूल किये जाते है।इतना ही नही टीचर्स डे, एनुअल डे, पिकनिक आदि के नाम पर भी हज़ारो रुपयों की वसूली होती है।बच्चे तैरता हो या न तैरता हो,स्विमिंग पूल है तो फीस तो उसकी भी देनी ही होगी।अंत मे किताबे और स्कूल ड्रेस जो बाजार में 200 में मिलती है, तो स्कूल से 300-350 की लेनी जरूरी है।
इसी प्रकार 12वी कक्षा तक तो शिक्षण संस्थाओं द्वारा,सरकारी को छोड़कर, बच्चो की शिक्षा दीक्षा के नाम पर एक लाख से लेकर तीन लाख रुपया सालाना व्यय कारना पड़ता है।365 दिन की फीस में मात्र 170 या 180 दिन ही पढ़ाई होती है शेष अवकाश या स्कूल फक्शन में निकल जाते है।
अब 12वी पास करने के बाद बच्चों के भविष्य की चिंता हर मा बाप को सताती है।बच्चा डॉक्टर,इंजीनियर,सी ए या कुछ और बनेगा उसके अनुरूप उसे कालेज में एडमिशन की समस्या।यहाँ भी प्रवेश शुल्क और अन्य शुल्क आदि मिला कर पहली बार 2 से 3 लाख के बीच पैसा एक मुश्त देना होता है।फिर सेमेस्टर सिस्टम में वर्ष में चार बार 80000 से 100000 तक या उससे अधिक भी हो सकता है,देना पड़ता है। अंत मे पढ़ाई करने के बाद तो 5000 से 25000 प्रति माह तक नौकरी करो या आगे फिर पढ़ो।
चिकित्सा,तकनीकी,मैनेजमेंट या शिक्षा विद्यालय हो या विश्व विद्यालय शिक्षा के नाम पर पैसे लेने में कोई भी पीछे नही।इसके विपरीत शिक्षकों को पैसा देने में लिखाते 20000 है तो देते 5000 से 15000 तक ही है। इतना ही नही इंजीनियरिंग कॉलेजों में तो चौथे साल का बच्चा पहले और दूसरे साल के बच्चों को पढ़ाता है।शिक्षकों की संख्या कभी पूरी नही होती।
योगी सरकार के आते ही अभिभावकों ने स्कूल और कॉलेजो द्वारा मनमाने रूप से बढ़ाई जा रही फीस के विरुद्ध आवाज उठाई है और योगी आदित्य नाथ ने ऐसे मामले में खुद कार्यवाही करने का आदेश भी दिया है परंतु किसी भी स्कूल कालेज वालो के ऊपर इसका अभी तक कोई असर नही हुआ है।शिक्षा प्रणाली को व्यापारिक प्रतिष्ठान बनाकर बिज़नेस बादस्तूर जारी है।लोगो की काली कमाई से खोले गये कालेज,मेडिकलकलेजी,मैनेजमेंट कालेज,इंजीनियरिंग कालेज और अन्य कोर्स पढ़ाने वाले कालेज खुलकर काली कमाई कर रहे है।यही कारण है कि भारी और मोटी फीस लेकर पढ़ाने वाले इन कॉलेजो से निकले बच्चो को नौकरी के लिए दर दर भटकना पड़ता है।
इसका असर यह है कि माध्यम वर्गीय व्यक्ति अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने से वंचित रहना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि स्कूल और कॉलेज की फीस को तुरन्त नियंत्रित करे चाहे इसके लिए कोई आयोग ही क्यो न गठित करना पड़े।