shabd-logo

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...

18 नवम्बर 2015

1048 बार देखा गया 1048
featured image


व्यक्ति बहुत हद तक वैसा ही बनता जाता है, जैसा जो कुछ वो सोचता है, विचार करता है I कोई किस गली-मोहल्ले में जन्म लेता है, कितने साधारण स्कूल में पढ़ाई करता है, रहने के लिए छोटा सा घर, साधारण रहन-सहन जैसी तमाम बातें बुलन्द हौसलों के आगे बहुत अदनी सी हो जाती हैं I

कानपुर के रावतपुर गाँव में रहने वाले अनुराग विश्वकर्मा अपने तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं I पिता श्री राम बसंत जी प्राइवेट नौकरी में और माँ गृहणी हैं I शहर के ही एक कॉलेज से इन्टरमीडिएट पास करने के बाद दिमाग़ में बड़ी ऊहापोह थी कि अब इससे आगे क्या किया जाए?

बीटेक करने के लिए अच्छी तैयारी और अच्छे पैसे दोनों की ज़रुरत होती है I गणित में थोड़े कच्चे थे इसलिए बीएससी में दाख़िले की हिम्मत नहीं हुई और बीए करना नहीं चाहते थे I

अब, न तो बीएससी और न ही बीए, तो फिर बीच में बीकॉम ही बचा...एडमिशन ले लिया साहब I इन्टर तक साइंस के विद्यार्थी रहे, एकाउंट्स वगैरह क्या जानें, सो जैसे-तैसे फर्स्ट-इयर बस पास हो गए I इस तरह ये पटाख़ा भी मन में किरकिरी ही छोड़ गया I चारो तरफ जैसे अँधेरा ही अँधेरा था I मन कह रहा था कि इससे अच्छा तो फ़ेल ही हो जाता I

कहते हैं कि आदमी का हौसला न टूटे, गहन निराशा में भी आशा की किरण ज़रूर दिखाई देती है I अनुराग के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ I असफलताएं तो बहुत हो चुकी थीं, और इनके चलते अब तक खयाली पुलाव पकाने के भी उस्ताद हो चुके थे I अबकी दिल में लहर उठी कि बीबीए किया जाए I कैसे किया जाए, और कहाँ से...बस इतना ही सवाल था I पता लगाना शुरू किया I किसी तरह मथुरा स्थित जी.एल.ए. यूनिवर्सिटी पंहुचे जहाँ उनकी मुलाक़ात वहां के आई.ए.एच. विभाग के निदेशक महोदय से हुई I उनके मार्गदर्शन पर ये तय हुआ कि बीबीए ही किया जाए I

अब सवाल ये था कि अभी तक पूरी पढ़ाई हिन्दी मीडियम से की थी, बीबीए के लिए इंग्लिश मीडियम ज़रूरी था I ऐसी दुविधा के समय पिताजी ने हौसला बढ़ाया और कहा, “अनुराग, तुम ये कर सकते हो और तुम्हीं करोगे I” पिताजी के ये शब्द अनुराग के लिए संजीवनी हो गए I अब उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना था I ये सोच लिया था कि इतिहास वही रचते हैं जो पीछे मुड़कर नहीं देखते I

सफ़र एक बार फिर शुरू हुआ I रात-दिन की कड़ी मेहनत रंग लाई और अनुराग को वर्ष 2013 में बीबीए ऑनर्स का सम्मान प्राप्त हुआ I पढ़ाई के साथ-साथ जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर, स्पोर्ट्स और अतिरिक्त क्रियाकलापों में भी भाग लेते रहे I बचपन से शतरंज खेलने का शौक़ था I इस तरह यूनिवर्सिटी में आयोजित प्रतियोगिताओं में भी भाग लेने लगे और कई पुरस्कार जीते I वर्ष 2012 में जीएलए यूनिवर्सिटी चेस क्लब के सचिव चुने गए I

पढ़ाई के साथ-साथ खेल-प्रतियोगिताओं में भी बेहतर मुकाम बनाते हुए, अनुराग अब तक एमबीए में दाख़िला ले चुके थे I अक्टूबर 2014 में प्लेसमेंट के लिए आई, एक बड़ी फाइनेंस कम्पनी ने अनुराग को सेवा का अवसर प्रदान किया और आज वह एरिया-हेड के रूप में जबलपुर स्थित ऑफिस में कार्यरत हैं I

अनुराग का मानना है कि समाज में रहते हुए इसी समाज के लिए कुछ न कर सकें, तो शिक्षा और तमाम पुरस्कारों के कोई मायने नहीं रहे I इसी विचार से प्रेरित वह ज़रूरतमंद लोगों की हर संभव मदद करना अपना कर्तव्य समझते हैं I आज वह विभिन्न सेवा-संस्थानों और धर्मार्थ अस्पतालों से सेवार्थ जुड़े हैं I वह दृढसंकल्प हैं कि इसी तरह हमेशा विभिन्न सेवा-संस्थानों के माध्यम से लोगों की मदद करते रहेंगे I

Anurag Vishwakarma

Anurag Vishwakarma

आप सभी को अनेक धन्यवाद मित्रों. :-)

10 दिसम्बर 2015

महावीर रावत

महावीर रावत

बधाई हो अनुराग जी को,kosis karne walo ki kabhi har nahi hoti.

4 दिसम्बर 2015

Rhoti Yadav

Rhoti Yadav

Anurag Sir - Apka lekh pasand aaya, esase mujhe prerna milegi.

4 दिसम्बर 2015

वर्तिका

वर्तिका

दिल में कुछ करने का जज़्बा हो तो इंसान को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता!

28 नवम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अनुराग जी को आपका सन्देश प्राप्त हो गया है, अनेक धन्यवाद आशीष जी !

20 नवम्बर 2015

Anurag Vishwakarma

Anurag Vishwakarma

अनेक धन्यवाद ओम सर :-)

20 नवम्बर 2015

आशीष श्रीवास्‍तव

आशीष श्रीवास्‍तव

बधाई हो अनुराग जी को... नित नयी ऊंचाइयों को छुए ।.. ओम जी सन्देश पहुंचा दीजिये

18 नवम्बर 2015

20
रचनाएँ
lifesketch
0.0
इस आयाम के अंतर्गत आप विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े जाने-माने व्यक्तियों की संक्षिप्त जीवनी की झलक पा सकते हैं ।
1

बाल-श्रमिकों का मसीहा

1 अक्टूबर 2015
0
6
4

‘अपने लिए जिए तो क्या जिए...ऐ दिल तू जी ज़माने के लिए’...कितने ही लोगों ने सुना होगा ये गीत और आगे बढ़ गए होंगे जबकि कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी हुए जिनके लिए ये गीत प्रेरणा बन गया और उन्होंने इसे अपने जीवन में उतार दिया । ऐसा ही एक नाम है ‘कैलाश सत्यार्थी’ । भारत के मध्य प्रदेश (विदिशा) में 11 जनवरी 1954 क

2

शिल्प-जगत का आकाश-दर्पण

1 अक्टूबर 2015
0
6
2

कला और कलाकार किसी एक देश के नहीं होते बल्कि सम्पूर्ण विश्व के होते हैं । कला, देश की सीमाओं के बन्धन में नहीं बंधती । कलाकार नील गगन में उन्मुक्त उड़ान भरते विहगों के सदृश होते हैं उनके लिए पूरी धरती और आकाश एक होते हैं ।मशहूर बुत-तराश अनीश कपूर ने वर्ष 2006 में अपनी एक कृति, एक विशाल आकाश दर्पण के

3

नन्हीं 'पाखी' की उड़ान...

5 अक्टूबर 2015
0
4
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

4

माटी का चितेरा

6 अक्टूबर 2015
0
5
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

5

सारी बस्ती क़दमों में है...

4 नवम्बर 2015
0
6
9

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

6

महान वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र राय

5 नवम्बर 2015
0
7
4

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

7

बच्चों तुम तक़दीर हो...

14 नवम्बर 2015
0
6
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

8

लक्ष्य

17 नवम्बर 2015
0
4
3

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

9

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...

18 नवम्बर 2015
0
17
7

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

10

कामयाबी के साथ, दुर्गा रघुनाथ

21 नवम्बर 2015
0
6
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

11

मानवता की अनूठी मिसाल : रोटी बैंक

31 दिसम्बर 2015
0
4
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

12

दृष्टिहीनों का दीपक- लुई ब्रेल

4 जनवरी 2016
0
4
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

13

गणतंत्र दिवस, समर्पण का दिन

25 जनवरी 2016
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

14

जब तान छिड़ी मैं बोल उठा : हरिशंकर परसाई

28 जनवरी 2016
0
1
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

15

हौसलों से उड़ान होती है...

1 फरवरी 2016
0
2
2

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

16

ज्योति कलश छलके

11 फरवरी 2016
0
4
2

'ज्योति कलश छलके', 'सत्यम शिवम सुंदरम' और 'तुम आशा विश्वास हमारे' जैसे अनेक कालजयी गीतों के रचनाकार, साहित्य और गीतलेखन के गुरु द्रोणाचार्य और विविध भारती के पितामह, भले ही पार्थिव शरीर त्यागकर वृजन् में विलीन हो गए हों, लेकिन हमारी यादों से कभी विलग नहीं होंगे। २८ फरवरी १९१३ को उत्तर प्रदेश के खुर्

17

प्रेरक है भारतीय गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का जीवन

2 अप्रैल 2016
0
5
2

बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में 2 अप्रैल 1942 को जन्मे डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह गणित के असंख्य विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत और देश का गौरव हैं। उन्होंने बिहार में ही रहकर मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह बचपन से ही पढाई में बहुत तेज़ थे। कहा जाता है कि पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के द

18

ख़ुद सक्षम बन दूसरों को सिखा रही मुक़ाबला करना

9 अप्रैल 2016
0
5
0

अपराध की घटनाएं अखबारों में पढ़कर व टीवी में देखकर निन्दी ही नहीं बल्कि उसके परिवार का हर सदस्य डर जाता था। निन्दी झुग्गी बस्तियों की तरह तंग जिंदगी जीते हुए हर दिन नरक सा अनुभव करती थी। टॉयलेट जाते समय कभी बस्ती के युवक उसको अपशब्द कहते तो कभी स्कूल जाते समय मनचले उस पर फब्तियां कसते। निन्दी मन मसो

19

थोड़ी सीख पटना के भाई गुरमीत सिंह से...

12 अप्रैल 2016
0
7
0

पटना के सरदार गुरमीत सिंह मौजूदा कपड़ों की अपनी पुश्तैनी दुकान संभालते हैं।लेकिन रात होते ही वे 90 साल पुराने और 1760 बेड वाले सरकारी पटना मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के मरीज़ों के लिए मसीहा बन जाते हैं। बीते 20 साल से गुरमीत सिंह हर रात लावारिस मरीज़ों को देखने के लिए पहुंचते हैं। वे उनके लिए भोजन और

20

छिपा हुआ सत्य

26 अप्रैल 2016
0
1
0

कितना अद्भुत, कितना सत्य !यह घटना भूमध्यसागर के सिसली द्वीप की है। अपराह्न के समय, सड़क पर अपने काम-धंधों में व्यस्त लोगों तथा व्यापारियों का जमघट लगा था। अचानक एक ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी, 'मिल गया, मिल गया।' एक नंगा आदमी सड़क के बीचो-बीच दौ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए