बचपन में अपनी उम्र के तमाम बच्चों की तरह वो भी दीवारों पर चाक और पेन्सिल से आड़ी-तिरछी लकीरें खींच दिया करते थे, सब की तरह उन्हें भी डांट पड़ा करती थी; लेकिन किसे मालूम था कि आगे चलकर नन्हें हाथों से उकेरी वही लकीरें सुन्दर कृतियों में तब्दील हो जाएंगी I उम्र के साथ अभिव्यक्ति के माध्यम भी बदलते गए i कभी कागज़, तो कभी कैनवस, कभी मिटटी तो कभी पत्थर I आज, थर्माकोल, सिरेमिक, लकड़ी, मिट्टी, प्लास्टर ऑव पेरिस या फिर कोई और अनुपयोगी चीज़ें, रचना करनी है तो फिर माध्यम कुछ भी हो...रचना होकर रहेगी I उनके द्वारा काफ़ी बड़े आकार में थर्माकोल पर बनी गणेश प्रतिमाएँ देखकर वुड-आर्ट-वर्क का भ्रम होता है, क्योंकि थर्माकोल पर उस तरह की नक्काशी कल्पना से परे है I मिट्टी, पत्थर और प्लास्टर ऑव पेरिस से बने स्कल्पचर्स भी देखकर यूं लगता है जैसे कुछ बोलना चाहते हों !
कानपुर में पले-बढ़े रवि शर्मा कला के क्षेत्र में बचपन से ही प्रतिभावान रहे I अनेकानेक प्रतियोगिताएं जीतीं, और अपनी कृतियों को अनेक प्रदर्शनियों के माध्यम से जनमानस के समक्ष प्रस्तुत कर वाहवाही हासिल की । पेन्टिंग्स, म्यूरल्स, स्कल्पचर्स, लाइट-मारबल, स्केचेज़ और ग्राफिटी आर्ट में रची आपकी सिरजना बहुत सराही जाती हैं I कला की बारीकियां सीखने के लिए आपने औपचारिक शिक्षा ग्रहण की I वर्ष 2008 में एमबीए करने के बाद आप पूर्ण रूप से कला के प्रति समर्पित हैं । आपका मानना है कि जिस प्रकार संगीत की औपचारिक शिक्षा हो न हो, कुछ न कुछ गुनगुनाते रहना ज़रूरी है, इसी प्रकार जीवन में ड्राइंग एंड पेंटिंग का भी जीवन में रंग भरते रहना ज़रूरी है I उनकी यह कला घर-घर पंहुचे, इस उद्देश्य से भविष्य में वह एक बड़े ‘ड्राइंग एंड पेंटिंग’ स्कूल की कल्पना करते हैं जहाँ कला के प्रति समर्पित कोई भी व्यक्ति आकर सीखे और यह कला-कान्ति आगे बढ़ा सके I