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बाल-श्रमिकों का मसीहा

1 अक्टूबर 2015

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featured image‘अपने लिए जिए तो क्या जिए...ऐ दिल तू जी ज़माने के लिए’...कितने ही लोगों ने सुना होगा ये गीत और आगे बढ़ गए होंगे जबकि कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी हुए जिनके लिए ये गीत प्रेरणा बन गया और उन्होंने इसे अपने जीवन में उतार दिया । ऐसा ही एक नाम है ‘कैलाश सत्यार्थी’ । भारत के मध्य प्रदेश (विदिशा) में 11 जनवरी 1954 को जन्मे कैलाश सत्यार्थी ने 'बचपन बचाओ आंदोलन' की शुरुआत की । पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रहे कैलाश सत्यार्थी ने 26 वर्ष की उम्र में ही करियर छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था । उन्हें बाल श्रम के ख़िलाफ़ अभियान चलाकर हज़ारों बच्चों की ज़िंदग़ियां बचाने का श्रेय दिया जाता है । उन्हें बच्चों और युवाओं के दमन के ख़िलाफ़ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । इस समय वे 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर' (बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं । सत्यार्थी ने अपने कई लेखों और वक्तव्यों में इस बात का उल्लेख किया कि राजनीति के जरिए सामाजिक परिवर्तन नहीं होता है, बल्कि समाजनीति के जरिए समाज में बदलाव आता है। जनता की उपेक्षा करके नहीं बल्कि जनता को साथ लेकर ही राज और समाज में सकारात्मक बदलाव होगा। सत्यार्थी ने ‘संघर्ष जारी रहेगा’ के नाम से एक पत्रिका भी निकाली। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर इस पत्रिका को दबे-कुचले लोगों की आवाज बना दी। हाशिए पर जिंदगी और मौत से जूझ रहे लोगों के दर्द को इस पत्रिका ने समेटा। राष्ट्रीय स्तर पर सत्यार्थी ने पंजाब के ईंट भट्ठे के बंधुआ मजदूरों को रिहा कराकर पहली बड़ी जीत हासिल की थी। इसके बाद कैलाश सत्यार्थी ने स्वामी अग्निवेश के साथ मिलकर बंधुआ मुक्ति मोर्चा का गठन किया। वर्तमान में देश भर के अनेक प्रांतों में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की राज्य इकाइयां हैं। इस संस्था से जुड़े हजारों सदस्य मासूमों को उनका बचपन लौटाने की मुहिम में लगे हुए हैं। बचपन बचाओ आंदोलन ने हजारों बाल मजदूरों को कालीन, कांच, ईंट भट्ठों, पत्थर-खदानों, घरेलू बाल मज़दूरी जैसे अनेक कामों से मुक्त कराया है। बाल मजदूरी के निर्मूलन के लिए ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ ने बाल मित्र ग्राम की परिकल्पना की । इसके अंतर्गत किसी ऎसे गांव का चयन किया जाता है जो बाल मजदूरी से ग्रस्त हो। बाद में उस गांव से धीरे-धीरे बाल मजदूरी समाप्त की जाती है और उन बच्चों का दाख़िला स्कूलों में कराया जाता है। इसके बाद इन बच्चों की बाल पंचायत बनाई जाती है। शहरों में इस योजना को ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ ‘बाल मित्र वार्ड’ के नाम से संचालित कर रहा है। बाल मजदूरी के खिलाफ कैलाश सत्यार्थी ने देश के साथ विदेशों में भी अलख जगाई है। उनके नेतृत्व में अनेक देशों के हजारों संगठनों ने सहयोग दिया । आपने बाल-श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन किया । इसके प्रभाव से सार्क के सदस्य देशों ने बाल मजदूरी पर एक कार्यदल बनाने की घोषणा की । बचपन बचाने की इस मुहिम में सत्यार्थी को काफी ठोकरें भी खानी पड़ी हैं। उन पर हमला भी किया गया। वर्ष 2004 में एक सर्कस में काम कर रही लडकियों को छुडाने सत्यार्थी अपने बेटे और साथियों के साथ पहुंच गए। सर्कस चलाने वालों ने उन पर और उनके साथियों पर हमले किए। सत्यार्थी अस्पताल में दाखिल कराए गए। अस्पताल से निकलते ही उन्होंने भूख हडताल की। इसके परिणामस्वरूप उन नेपाली बच्चियों को मुक्त कराया गया और उन्हें एक नई ज़िन्दगी मिली। यह सच है कि दिल में जज़्बा हो देश-दुनिया के लिए कुछ करने का, फिर कोई काम मुश्किल नहीं होता । ठीक ऐसा ही कर दिखाया है बचपन बचाने को समर्पित कैलाश सत्यार्थी ने । बालश्रम के विरुद्ध उनका संघर्ष लाखों-करोड़ों लोगों के लिए एक प्रबल प्रेरणा है ।
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

विजय जी, आपका विचार रचनात्मक एवं विचारणीय है । धन्यवाद !

3 अक्टूबर 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

शर्मा जी सांझा किए गए विचार अमूल्य हैं किंतु संस्थाएं चलाने वाले तो नोबेल तक जीत रहें हैं किंतु न तो बाल मजदूरी रुकी और विकास के नाम पर श्रमिकों की दशा बद से बदतर होती जा रही है। कितना अच्छा हो कि बाल मजदूरी के विरुद्ध जोर लगाने वाले ऐसे प्रबुद्ध नागरिक तैयार करें जो बाल मजदूर भी रखें और उनके बचपन एवं शिक्षा का भी ध्यान रखें

2 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

धन्यवाद वर्तिका जी !

1 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

"कैलाश सत्यार्थी", वाकई में बाल-श्रमिकों के मसीहा है। उनसे सम्बंधित लेख साझा करने के लिए धन्यवाद!

1 अक्टूबर 2015

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रचनाएँ
lifesketch
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इस आयाम के अंतर्गत आप विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े जाने-माने व्यक्तियों की संक्षिप्त जीवनी की झलक पा सकते हैं ।
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बाल-श्रमिकों का मसीहा

1 अक्टूबर 2015
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‘अपने लिए जिए तो क्या जिए...ऐ दिल तू जी ज़माने के लिए’...कितने ही लोगों ने सुना होगा ये गीत और आगे बढ़ गए होंगे जबकि कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी हुए जिनके लिए ये गीत प्रेरणा बन गया और उन्होंने इसे अपने जीवन में उतार दिया । ऐसा ही एक नाम है ‘कैलाश सत्यार्थी’ । भारत के मध्य प्रदेश (विदिशा) में 11 जनवरी 1954 क

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शिल्प-जगत का आकाश-दर्पण

1 अक्टूबर 2015
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कला और कलाकार किसी एक देश के नहीं होते बल्कि सम्पूर्ण विश्व के होते हैं । कला, देश की सीमाओं के बन्धन में नहीं बंधती । कलाकार नील गगन में उन्मुक्त उड़ान भरते विहगों के सदृश होते हैं उनके लिए पूरी धरती और आकाश एक होते हैं ।मशहूर बुत-तराश अनीश कपूर ने वर्ष 2006 में अपनी एक कृति, एक विशाल आकाश दर्पण के

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नन्हीं 'पाखी' की उड़ान...

5 अक्टूबर 2015
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माटी का चितेरा

6 अक्टूबर 2015
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सारी बस्ती क़दमों में है...

4 नवम्बर 2015
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महान वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र राय

5 नवम्बर 2015
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बच्चों तुम तक़दीर हो...

14 नवम्बर 2015
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लक्ष्य

17 नवम्बर 2015
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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...

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कामयाबी के साथ, दुर्गा रघुनाथ

21 नवम्बर 2015
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मानवता की अनूठी मिसाल : रोटी बैंक

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दृष्टिहीनों का दीपक- लुई ब्रेल

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गणतंत्र दिवस, समर्पण का दिन

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जब तान छिड़ी मैं बोल उठा : हरिशंकर परसाई

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हौसलों से उड़ान होती है...

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ज्योति कलश छलके

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'ज्योति कलश छलके', 'सत्यम शिवम सुंदरम' और 'तुम आशा विश्वास हमारे' जैसे अनेक कालजयी गीतों के रचनाकार, साहित्य और गीतलेखन के गुरु द्रोणाचार्य और विविध भारती के पितामह, भले ही पार्थिव शरीर त्यागकर वृजन् में विलीन हो गए हों, लेकिन हमारी यादों से कभी विलग नहीं होंगे। २८ फरवरी १९१३ को उत्तर प्रदेश के खुर्

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प्रेरक है भारतीय गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का जीवन

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बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में 2 अप्रैल 1942 को जन्मे डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह गणित के असंख्य विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत और देश का गौरव हैं। उन्होंने बिहार में ही रहकर मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह बचपन से ही पढाई में बहुत तेज़ थे। कहा जाता है कि पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के द

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ख़ुद सक्षम बन दूसरों को सिखा रही मुक़ाबला करना

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अपराध की घटनाएं अखबारों में पढ़कर व टीवी में देखकर निन्दी ही नहीं बल्कि उसके परिवार का हर सदस्य डर जाता था। निन्दी झुग्गी बस्तियों की तरह तंग जिंदगी जीते हुए हर दिन नरक सा अनुभव करती थी। टॉयलेट जाते समय कभी बस्ती के युवक उसको अपशब्द कहते तो कभी स्कूल जाते समय मनचले उस पर फब्तियां कसते। निन्दी मन मसो

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थोड़ी सीख पटना के भाई गुरमीत सिंह से...

12 अप्रैल 2016
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पटना के सरदार गुरमीत सिंह मौजूदा कपड़ों की अपनी पुश्तैनी दुकान संभालते हैं।लेकिन रात होते ही वे 90 साल पुराने और 1760 बेड वाले सरकारी पटना मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के मरीज़ों के लिए मसीहा बन जाते हैं। बीते 20 साल से गुरमीत सिंह हर रात लावारिस मरीज़ों को देखने के लिए पहुंचते हैं। वे उनके लिए भोजन और

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छिपा हुआ सत्य

26 अप्रैल 2016
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कितना अद्भुत, कितना सत्य !यह घटना भूमध्यसागर के सिसली द्वीप की है। अपराह्न के समय, सड़क पर अपने काम-धंधों में व्यस्त लोगों तथा व्यापारियों का जमघट लगा था। अचानक एक ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी, 'मिल गया, मिल गया।' एक नंगा आदमी सड़क के बीचो-बीच दौ

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