“सारी बस्ती क़दमों में है, ये भी इक फ़नकारी है
वरना बदन को छोड़ के अपना जो कुछ है सरकारी है I”
उर्दू ग़ज़ल और शायरी के आसमान पर मशहूर शायर और गीतकार जनाब राहत इन्दौरी साहब का एक अलग मुक़ाम है I मंच पर आकर वो माइक के सामने खड़े होकर, बस एक बार नज़र घुमाकर ऑडियंस को देख भर लें तो पूरा समाँ तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता है I किसी शेर के दो लफ्ज़ बोलकर उन्हें इंतज़ार करना पड़ता है कि मस्तियों की गूँज थमे तो शेर पूरा करें I शेर-ओ-शायरी के दीवानों के लिए उनके अशआर किसी टॉनिक से कम नहीं होते I
01 जनवरी, 1950 को इंदौर में जनाब रफ़तउल्लाह कुरैशी के घर जन्मे थे राहत इंदौरी I शुरुआती तालीम इंदौर में ही पूरी हुई और उन्होंने उर्दू साहित्य में एम.ए. की डिग्री हासिल की I उर्दू साहित्य में ही उन्होंने पी.एच-डी. की डिग्री हासिल की जिसमे उनके शोध का विषय था ‘उर्दू में मुशायरा’ I उन्होंने उर्दू अध्यापन से अपने करीअर की शुरुआत की I फिर उन्हें देश-विदेश से मुशायरों में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रण आने लगे और उनकी शायरी और अंदाज़-ए-बयाँ का जादू सुनने वालों पर इस क़दर तारी हुआ कि लोग सुन भर लें कि महफ़िल में राहत साहब भी आने वाले है, फिर उनके चाहने वालों की भीड़ देखते ही बनती है I
राहत इन्दौरी ने कई हिन्दी फ़िल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं जो बहुत मकबूल हुए I उर्दू शायरी की ख़ातिर लोगों के दिलों में मोहब्बत को वो ज़िन्दगी में हासिल तमाम अवार्ड्स और सम्मान से भी बढ़कर मानते हैं I
हमारी कामना है कि जनाब राहत इंदौरी साहब अपनी ग़ज़लों, नज़्मों और अशआरों के ज़रिए, यूं ही देश-दुनिया का मनोरंजन करते रहें I