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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश

23 मार्च 2023

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हम इंसानों में कौन असल में कौन है, इसका पता करना कितना ज़्यादा मुश्किल है। कौन सी मानव जाति श्रेष्ठ है, ये लड़ाई कितनी पुरानी है। और इसे मनवाने में कितना ज़्यादा खून खराबा हुआ है! अगर  हम धर्म को अलग कर दें तो क्या एक कमजोर और एक बलवान साथ नहीं रह सकते! ये पौरुष और श्रेष्ठ होने की लड़ाई का अंत क्या है! इस अहम पर जब किसी एक धर्म का रंग चढ़ता है तो सारा कुछ और भी खतरनाक हो जाता है।

मुझे अब  समझ आता है कि मेरे पिता क्यों कश्मीर पर ज़्यादा बात नहीं करते थे। यहाँ हर आदमी का अपना निजी कश्मीर है जिससे अपने पूरे अतीत के साथ वह बहुत कसकर जुदा हुआ है। हर एक घटना के उतने ही पहलू हो सकते हैं, जितने लोग उस घटना का जिक्र कर रहे हैं। निजी कब सार्वजनिक हो जाते है और पूरा सार्वजनिक कब आपकी निजता छिन लेता है, यह आपको पता ही नहीं चलता। सबसे कम बात भविष्य की होती है, क्योंकि भविष्य इतना ज़्यादा ढुलमुल है कि जब तक वर्तमान को उसकी पूरी आज़ादी से नहीं जिया जाएगा तब तक भविष्य पर कोई भी बात करना झूठ सुनाई देगा।

मुझे लगता है कि लोग बोर हो जाते हैं, जैसे हमारे देश में लोग गांधी से बोर हो गए हैं। जैसे ही कोई गांधी की अहिंसा के अलावा कोई विवादास्पद बात उनके बारे में कहता है तो लोगों के कान खड़े हो जाते हैं। हमे अपनी जिंदगी में लागातार ड्रामा चाहिए होता है। हमारे घरों को ही ले लो, चार-छः लोगों में हम इतना ड्रामा खड़ा कर देते हैं कि हमारा आपस में साथ रहना मुश्किल हो जाता है।

कश्मीर अपनी समस्याओं और इतिहास में इतना गुथा हुआ है कि सतही सवाल भी गहरे जख्म उभार देता है। हम शहरी लोगों को जख्मों को छुपाने की आदत है, पर कश्मीर में जख्म खुले हुए हैं। हर आदमी की अपनी कहानी है, अपना भोगा हुआ इतिहास है और उसकी थकान है। उस पर मेरे जैसा एक इमोशनल कश्मीरी आता है, जिसे सिर्फ उसके बचपन के सुंदर चित्र याद हैं, और ऊपर से वह कश्मीर पर लिखना चाहता है… ये सारी बातें फिर एक नया पैराडॉक्स बनती हैं। मैं इससे जूझ रहा हूँ, जैसे बहुत बार मैं कश्मीर के बारे में ज़्यादा जानना नहीं चाहता।

आप हर पल बदलते हो, हर पढ़ा हुआ नया साहित्य आपको बदलता है, देखि हुई अच्छी फिल्म और यात्राएं आपको बदलती हैं। लेकिन कुछ जीवन के अनुभव, जिनमें सबसे ज़्यादा बचपन शामिल होता है, उसके भरी पत्थर नदी की गहराई में कहीं जमा हो जाते हैं, उन पर किसी भी बाढ़ या तूफ़ान से कोई फर्क नहीं पड़ता। जब-जब आप नदी में गहरे गोता लगाते हैं, वे सारे पत्थर आपको वहीं वैसे के वैसे जमे हुए दिख जाते हैं, मानो वे आपके भीतर आने का इंतजार कर रहे थे। 

हिंद युग्म Hind Yugm की अन्य किताबें

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रचनाएँ
रूह
5.0
मैं जब इस किताब को लिखने, अपनी पूरी नासमझी के साथ कश्मीर पहुँचा तो मुझे वहाँ सिर्फ़ सूखा पथरीला मैदान नज़र आया। जहाँ किसी भी तरह का लेखन संभव नहीं था। पर उन ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए मैंने जिस भी पत्थर को पलटाया उसके नीचे मुझे जीवन दिखा, नमी और प्रेम। मैं कहीं भी बचकर नहीं चला हूँ। जो जैसा है में, जैसा जीवन मैं देखना चाहता हूँ, उसे भी दर्ज करता चलता हूँ। कभी लगता है कि मैं पिता के बारे में लिखना चाहता था और कश्मीर लिख दिया और जब कश्मीर लिखने बैठा तो पिता दिखाई दिए। मेरी सारी यादें वहीं हैं जब हम चीज़ों को छू सकते थे। मैं छू सकता था, अपने पिता को, उनकी खुरदुरी दाढ़ी को, घर की खिड़की को, खिड़की से दिख रहे आसमान को, बुख़ारी को, काँगड़ी को। अब इस बदलती दुनिया में वो सारी पुरानी चीज़ें मेरे हाथों से छूटती जा रही हैं। उन छूटती चीज़ों के साथ-साथ मुझे लगता है मैं ख़ुद को भी खोता चला जा रहा हूँ। आजकल जो भी नई चीज़ें छूता हूँ वो अपने परायेपन की धूल के साथ आती हैं। मैं जितनी भी धूल झाड़ूँ, मुझे अपनापन उन्हीं पुरानी चीज़ों में नज़र आता है। लेकिन जब उनके बारे में लिखने बैठता हूँ तो यक़ीन नहीं होता कि वो मेरे इसी जन्म का हिस्सा थीं।
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पुस्तक के बारे में

23 मार्च 2023
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मानव कौल की इस में यात्रा में कश्मीर और कश्मीर बिताए हुए कुछ यादें हैं। ख्वाजाबाग में बसे घर की नीली दीवार, जो कभी संजीदा और आँगन में खुशियां झूमा करती थी, आज जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं और गायब होने की प

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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश

23 मार्च 2023
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हम इंसानों में कौन असल में कौन है, इसका पता करना कितना ज़्यादा मुश्किल है। कौन सी मानव जाति श्रेष्ठ है, ये लड़ाई कितनी पुरानी है। और इसे मनवाने में कितना ज़्यादा खून खराबा हुआ है! अगर  हम धर्म को अल

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पात्रों का चरित्र-चित्रण

23 मार्च 2023
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रूह- रूह मानव की महिला साथी। जो आजाद खयाल की नरम दिल वाली है। कश्मीर के लोगों के बारे में पढ़ना और जानना उसे अच्छा लगता है। बेबी आंटी और मानव जब मिलते हैं तो उसकी भी आँखें भावुकता से गीली हो जाती ह

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