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कुदरत का कानून..पार्ट 5

5 दिसम्बर 2024

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निक्की भी बाय कर गाड़ी स्टार्ट करती है---गाड़ी वाकई ठीक हो चुकी थी---अंकित के देखते देखते निक्की की गाड़ी नज़र से ओझल हो जाती है।

कमालः की बात हुई---अगले दस मिनट में निककी की गाड़ी उसके घर के सामने थी।

जंगल तो यहाँ से काफी दूर है--- मुख्य सड़क पर आते आते ही आधा घण्टा लग जाता है---और बस दस मिनट में मैं घर आगयीं---हैरानी से निक्की ने गाड़ी पार्क की।---अभी भी उसकी नज़र उस रोड पर थी---जिससे वो चलकर आयीं थी।

"निक्की,,,तेरा दिमाग खराब हो रहा है---तुझे एक ही घण्टा लगा है---जंगल में जो कुछ हुआ---इसकी वजह से तू पता नही क्या क्या सोच रही है"----अपने सिर पर चपत लगाते हुए निक्की खुद से ही बोली।

घड़ी पर नज़र डाली---पर वो बन्द हो चुकी थी----शायद पानी चला गया है--!!!-----मोबाइल देखा,-----पर उसकी बैटरी तो पहले ही खत्म हो चुकी थी।

रात गहरा रही थी---पर अब मौसम साफ था----बिल्कुल साफ----लग ही नही रहा था कि थोड़ी देर पहले आसमान से तूफान बरस रहा था।

निक्की ने अभी भी वो शॉल लिया हुआ था----समर शायद सो न गए हों----!!!!---- परेशान हो कितना फोन लगाया होगा उन्होंने-----अब सारी शिकायतें दूर कर दूंगी----मन ही मन मुस्कुराते हुए वो अंदर आयीं।

अंदर गयी तो पूरा कमरा अभी भी सजा हुआ था---घर की  एक एक चाभी दोनो के पास रहती थी---तो कोई परेशानी ही नही हुई।

कितना प्यार करते हैं समर मुझे----अभी तक केक---मोमबत्ती----सजावट सब वैसा ही है----अरे,,,शैम्पेन की बोतल भी लगता है मेरी बाट जोह रही है----निक्की मुस्कुराते हुए बोली।

वातावरण में हल्की हल्की ठंड होने लगी थी---निक्की ने शॉल और कस कर बदन पर लपेट लिया।

मुस्कुराते हुए समर के पास गई----जो शायद उसी का इंतज़ार करते करते सोफे पर सो गया था---अभी भी एक हाथ में मोबाइल थामा हुआ था।
लव यू समर,,,,,तुम्हारे बिना कुछ नही हूँ मैं----मुस्कुराते हुए निक्की समर के बालों में हाथ फिराते हुए बोली----समर,,,,,समर----उठ जाओ----मैं आ गयी।

समर पहले कुनमनाया पर दुबारा निक्की की आवाज़ कानों में पड़ते ही तुरन्त उठ गया।
निक्कू,,,,तुम आ गईं..????-----मुझे कितनी चिंता हो गयी थी..??-----तुम....तुम ठीक हो न------समर जल्दी से आँख खोल कर बोला----अपने सामने निक्की को देख उंसने राहत की सांस ली।

हाआं बाबा बिल्कुल ठीक हूँ----रास्ते में बारिश हो रही थी---बस थोड़ी सी हाथ में चोट लगी है----निक्की बेहद खुश थी कि उसका जीवन साथी कितना प्यार करता है।----पापा के विरोध के बाद उसने सही निर्णय लिया था समर से शादी करने का----आज उसे बिल्कुल पछतावा नही था।

दिखाओ चोट,,,और इतनी देर कहाँ लगा दी---???बारह बजने वाले हैं----कब से फोन मिला रहा हूँ..????-----समर  परेशान हो उसका हाथ देखने लगा।

बारह....लगता है अभी नींद में ही हो----सॉरी,,,,मेरी वजह से हमारी एनिवर्सरी निकल गयी----कुछ मुस्कुराते और कुछ नम होते हुए उंसने अपना हाथ आगे किया----जब निक्की अंधेरे में खंडहर को टटोलते हुए अंदाज़ से आगे बढ़ रही थी----तो एक मेज़ से टकरा गई थी----और उसी के कोने में निकली एक कील उसके हाथ को चीर गयी थी।

पर उस समय डर और घबराहट में उसका दर्द की तरफ ध्यान ही नही गया।

निक्की ने अपना हाथ आगे किया----समर मुस्कुराते हुए बोला,,,---जान,,,,मेरे प्यार का टैस्ट ले रही हो----कहाँ है चोट..????----पर फिर भी---अगर तुमने कहा है तो मेरी जान को सपने में भी दर्द नही होना चाहिए---और उसका हाथ चूम लेता है।

निक्की जल्दी से उससे अपना हाथ छुड़ाकर देखती है----सचमुच वाहं कोई चोट नही थी।
ये....ये कैसे----मुझे अच्छी तरह याद है की मेरे खून निकल रहा था----निक्की की आंखे हैरानी से चौड़ी हो गईं।

चलो छोड़ो----शायद कोई पुरानी बात याद आ गयी होगी----बारह तो बज चुके हैं----पर कोई नहीं अभी आधा घण्टा ही ऊपर हुआ है----केक तो अभी भी काट सकते हैं----आखिर हमारे फेरे तो इसी समय हुए थे---समर उसका हाथ पकड़ कर ले जाते हुए बोला।

साढ़े बारह...!!!!!-----निक्की ने अब घड़ी की तरफ देखा----सच में बारह से कुछ ही मिनट ऊपर हुए थे---पर.....ये कैसे..????-----निक्की को खूब याद था कि दो तो उसे जंगल में ही बज गयेथे।

जान,,,जाओ चेंज करके आओ----फिर मिलकर केक काटेंगे और शैम्पेन खोलेंगे----उसके बालों में हाथ फिराते हुए समर बोला।

निक्की की नज़र अभी भी घड़ी पर थी---और रह रह एक निगाह अपने हाथ पर जारही थी।

पर अब तो दिन निकलने को होना चाहिए था----ये अभी तक रात कैसे है--????-----ये क्या हो रहा है..????-----कहीं मैं ज्यादा तो नही सोच रही---????;----शायद समर ठीक कह रहे हैं----मैं थकान की वजह से कुछ भी सोच रही हूँ-----और वो चेंज करने चली जाती है।

शाल एक तरफ रख बदलने के लिए कपड़े निकाले हिथे की हाथ पर नज़र गयी----ऐसा लगा कि घाव है----ये...ये फिरसे चोट.....घबरा गई थी वो-----पर बाहर से समर की आवाज़ आयीं----तो एक बार फिर हाथ पर नज़र डाल वो कपड़े बदलने लगी।

ठंड का अहसास हो  रहा था----जल्दी से शाल लपेट---सब कुछ भूल बालों को ठीक करने लगी।

समर का मोबाइल खड़खड़ा उठा।
ह्म्म्म,,,समर सामने वाले बन्दे से कुछ बात कर रहा था अच्चानक फिर मौसम भयावह हो गया----रात और अंधीयारी हो गयी----फिर तेज़ बारिश पड़ने लगी----कमरे की खिड़कियों के पल्ले जोर जोर से हिलने लगे।

*****,
प्लीज  कमेंट्स ,,,,

धन्यवाद--शिल्पी गुप्ता ✍✍🙏🙏


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