नई दिल्ली: उड़ी हमला इस देश में एक ऐसा मसला बनकर सब के सामने उभरा मानो हर जगह ज़िक्र जंग का होने लगा। रातों रात टेलीविज़न से लेकर चौराहों-नुक्कड़ तक हर कोई पाकिस्तान को अपना जानी दुश्मन समझ बैठा। जो कि मूल राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित भी है। बहरहाल अगर देश में युद्ध सरीखे हालात आ जाएं तो क्या आप सेना में भर्ती होना चाहेंगे, जी यह मज़ाक नहीं हक़ीक़त है। क्या आप यानी जनता जनार्दन वाकई सेना की मदद करेगी, जी यह बिल्कुल संभव है अगर आप मदद करना चाहते हैं तो तैयार हो जाईए जंग-ए-मैदान में अपने फौजी भाईयों की मदद के लिए।
दरअसल लोग मदद तो करना चाहते हैं लेकिन इस बात से अंजान है कि किया क्या जाए. आप प्रादेशिक सेना यानी टेरिटोरियल आर्मी के ज़रिए सेना की मदद कर सकते हैं इसके लिए आपको दो साल की ट्रेनिंग दी जाएगी जिसके बाद आपको सेना का बुलावा कभी भी आ सकता है। यह बेहद आसान है, बस जानकारी न होने के चलते लोग इससे अंजान है। इसके लिए आपको कुछ नहीं करना है आप जो भी रोज़मर्रा के जीवन में करते हैं करते रहिए मगर ज़रूरत के समय में सेना के द्वारा आपको बुलाया जाएगा और आपको उस वक़्त जाना होगा।
कैसे होगा चयन?
लड़कों की स्क्रीनिंग प्रीलिमिनरी इंटरव्यू बोर्ड अलग अलग हैडक्वार्टर्स करते हैं. प्रीलिमिनरी इंटरव्यू में चयन होने के पश्चात कैंडीडेट को अपनी जानकारी देनी होती है है. इसके अन्तर्गत सरकारी से लेकर प्राइवेट फर्म या व्यवसाय की तमाम जानकारी देनी होती है। जिसके बाद एसएसबी व मेडिकल स्क्रीनिंग पास करनी होती है. जिसके बाद पूर्व अफसरो के द्वारा स्क्रीनिंग आर्मी हैडक्वार्टर में सलेक्शन बोर्ड के ज़रिए की जाती है. अंत में सभी उत्तीर्ण अभ्यार्थियों को मेडिकल की प्रक्रिया से ग़ुज़रना पड़ता है जिसके बाद आप की ट्रेनिंग होती है और फिर आप सेना की मदद के लिए जा सकते हैं। सेना भी ज़रूरत पड़ने पर ही इनका इस्तेमाल करती है और इनको सीधे फ्रंट पर नहीं भेजा जाता बल्कि इनको बाकी कार्यों के लिए रखा जाता है जैसे की सपलाई आदि।
आखिर प्रादेशिक सेना है क्या?
प्रादेशिक सेना का सीधा मतलब खुद की मर्ज़ी से कुछ वक़्त के लिए एक कारसेवा जैसा ही है । यह एक प्रकार की नागरिक सेवा भी है जिसे युद्ध के वक़्त भारतीय सेना के बाद यह दूसरी सेना होती है जो सीधे तौर पर तो फ्रंट पर नहीं होती मगर उनके लिए कई काम यही लोग करते हैं। इसे टेरिटोरियल आर्मी भी कहा जाता है। इन्हें सक्षम बनाने के लिए कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है। यह बुनियादी तौर पर नागरिक या जनता का एक शौक के तौर पर अपने देश के लिए कुछ कर ग़ुज़रने की भावना का प्रतिबिंब है जिसके ज़रिये वो इसका हिस्सा बनता है और देश के लिए सीमित समय में ही कुछ योगदान देने की महत्वकांक्षा को पूर्ण कर देता है।1962, 1965 व 1971 के युद्धों में इसकी अहम भूमिका रही। प्रादेशिक सेना का उपयोग इंडियन आर्मी को मदद करने व थोड़ा आराम देने के लिए किया जाता है। इसे इतिहास में कई बार उपयोग में लाया गया है। इसकी भूमिका कई युद्धों में रही जैसे 1962, 1965 आदि।
कौन कौन ले चुका है ट्रेनिंग?
इसकी ट्रेनिंग लेने वालों की फेहरिस्त तो बेहद लंबी है लेकिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन राव वीरेन्द्र सिंह और भारत को पहला क्रिकेट विश्व कप दिलाने वाले प्रसिद्ध ऑलराउंडर क्रिकेटर कपिल देव एवं दक्षिण भारत के लोकप्रिय कलाकार मोहनलाल प्रादेशिक ट्रेनिंग ले चुके हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे नाम है जो कि यह प्रशिक्षण ले चुके हैं। तो इंतज़ार किस बात का झटपट तैयार हो जाइए और इस ट्रेनिंग के लिए तैयार हो जाएं और अगर वाकई आप देश की या सैनिकों की युद्ध के दौरान मदद करना चाहते हैं और दुश्मन से लड़ना चाहते हैं तो बस यह आप ही के लिए है। क्या पता किस वक़्त आप देश के लिए काम आ जाएं और देश के लिए काम करना या मैदान-ए-जंग में देश के लिए काम आना किसी भी अहसास और गौरव से बढ़कर होता है। इसे कहने बताने की ज़रूरत नहीं बस अगर आप कुछ देश के लिए वाकई करना चाहते हैं इन फेसबुक, ट्विटर ट्रेंड, कमेंट से बाहर निकलकर, खोखली बहसों को रोज़ रोज़ कर के और सुनकर कुछ हासिल नहीं होगा बल्कि वाकई कुछ कर ग़ुज़रने की भावना है तो बस यह मौका केवल आप ही के लिए है।