किस्मत क्या है,
आख़िर क्या है किस्मत ?
बचपन से एक सवाल मन मे है, जिसका जबाब ढूंड रहा हूँ| बचपन मे पास होना या फेल हो जाना या फिर एक दो नंबर से अनुतीर्ण हो जाना, क्या ये किस्मत थी?
आपके कम पढ़ने के बाबजूद आपके मित्र के आपसे ज़्यादा नंबर आ जाना, क्या ये किस्मत थी?
स्कूल से लौटते हुए रास्ते मे कुछ पैसे सड़क पर मिल जाना और मित्रो को बताना, खुशी से पागल हो जाना, क्या ये किस्मत थी?
क्लास मे सबसे प्रखर होने के, सभी प्रकार से मदो से दूर होने के बाबजूद कोई गर्लफ्रेंड ना होना, क्या ये किस्मत थी?
पर आज जब किस्मत को परिभाषित करना चाहता हूँ तो समझ नही आता क़ि इसे शब्दो मे कैसे वर्णित करूँ?
मेरे लिए तुम्हारी एक झलक ही तो किस्मत थी जब तुम मुझे देख कर मुस्करा जाती थी, वो किस्मत थी
कुछ सपने इन आँखो ने सजाए थे, उन्हे साकार होते हुए देखना, किस्मत थी
जीवन के हर कदम पर, हर छोटे बड़े फ़ैसले पर मा-पिता का साथ मिला, ये किस्मत थी|
जब मे रास्ता भटक चुका था, चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा था, सभी दिशाए खो चुकी थी, तब तुम रोशनी की एक किरण बन कर मेरी पथ प्रदर्शक बनी, ये मेरे लिए किस्मत थी|
जब तुम्हे ढूंड-ढूंड कर थक चुका था, विश्वास, साहस, ज्ञान , विवेक, शील, विचार सब मेरा साथ छोड़ गये थे तब ये बोध होना क़ि तुम मुझमे ही निहित हो मेरी किस्मत ही थी||
मुझे जो भी दुख है, क्या वो वास्तव मे दुख है या फिर दुख के आवरण मे किसी कड़वी सच्चाई को छुपाने का प्रयास है पर किसी भी झूट के आवरण मे छिपी हुई सच्चाई का अनुबोध होना ही वास्तव मे किस्मत थी||
किस्मत क्या है,
आख़िर क्या है किस्मत?