हर रात जो बिस्तर मेरा इंतेजार करता था,
जो दिन भर की थकान को ऐसे पी जाता था जैसे की मंथन के बाद विष को पी लिया भोले नाथ ने
वो तकिया जो मेरी गर्दन को सहला लेता था जैसे की ममता की गोद
वो चादर जो छिपा लेती थी मुझको बाहर की दुनिया से
आजकल ये सब नाराज़ है, पूरी रात मुझे सताते है
जब से तुम गयी हो ...
रात भी परेशान है मुझसे, दिन भी उदास है
शाम तो ना जाने कितनी बेचैन करती है
वो गिटार जो हर रोज मेरा इंतेजार करता था आजकल मुझे देखता ही नही
आज चाय बनाई तो वो भी जल गयी, बहुत काली सी हो गयी
लॅपटॉप है जो कुछ पल के लिए बहला लेता है मुझे सम्हाल लेता है
पर वो भी फिर कुछ ज़्यादा साथ नही निभाता ||
सब 2 दिन मे बदल गये है मुझसे, जब से तुम गयी हो....