काम और उम्र के बोझ से झुकने लगा हूँ मैं
अनायास ही चलते-चलते अब रुकने लगा हूँ मैं
कितनी भी करू कोशिश खुद को छिपाने की
सच ही तो है, पिता के जैसा दिखने लगा हूँ मैं ||
28 मई 2017
काम और उम्र के बोझ से झुकने लगा हूँ मैं
अनायास ही चलते-चलते अब रुकने लगा हूँ मैं
कितनी भी करू कोशिश खुद को छिपाने की
सच ही तो है, पिता के जैसा दिखने लगा हूँ मैं ||
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हिन्दी साहित्य के प्रति रुझान, अपने विचारो की अभिव्यक्ति अपने ब्लॉग के माध्यम से आप सब को समर्पित करता हूँ|
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