करो वंदना स्वीकार प्रभो
वासना से मुक्त हो मन,
हो भक्ति का संचार प्रभो
जग दलदल के बंधन टूटे
हो भक्तिमय संसार प्रभो ॥
वाणासुर को त्रिभुवन सौपा
चरणों में किया नमस्कार प्रभो
भक्तो पर निज दृष्टि रखना
करुणा बरसे करतार प्रभो ॥
कण-२ में विद्धमान हो नाथ
तुम निराकार साकार प्रभो
दानी हो सब कुछ दे देते
दे दो भक्ति अपार प्रभो ॥
अनसुना बचा नहीं कुछ तुमसे
सुन लेना पापी की पुकार प्रभो
कुछ अच्छा मैंने किया नहीं
दयनीय पर करो विचार प्रभो ॥
हो नाम तुम्हारा अंतः मन में
कर दो दूर विकार प्रभो
विनती मेरी शरण में ले लो
करो वंदना स्वीकार प्रभो ॥