कुछ फायदा नहीं
मैं सोचता हूँ, खुद को समझाऊँ बैठ कर एकदिन
मगर, कुछ फायदा नहीं ||
तुम क्या हो, हकीकत हो या ख़्वाब हो
किसी दिन फुर्सत से सोचेंगे, अभी कुछ फायदा नहीं ||
कभी छिपते है कभी निकल आते है, कितने मासूम है ये मेरे आँशु
मैंने कभी पूछा नहीं किसके लिए गिर रहे हो तुम
क्योकि कुछ फायदा नहीं
तुम पूछती मुझसे तो मैं बहुत कुछ कहता
मगर वो सब तुम्हे सुनना ही कहाँ था जो मुझे कहना था
मगर रहने दे, कुछ फायदा नहीं
फिर से वही दर्द वही आहे, लाख रोके खुद को फिर भी वही जाए
बेहतर होता कि कभी मिलते ही नहीं
मगर अब जब मिले है तो ये दर्द सहने दे
कुछ फायदा नहीं
वो कहती है में उसके काबिल नहीं हूँ
बहुत है अभी जिन्हे मै हासिल नहीं हूँ
कुछ भी हो हक़ीक़त मगर पागल नहीं हूँ
मगर कुछ फायदा नहीं
किसी दिन फुर्सत से सोचेंगे , अभी कुछ फायदा नहीं ||