कितनी शांत सफेद पड़ी
चहु ओर बर्फ की है चादर
जैसे कि स्वभाव तुम्हारा
करता है अपनो का आदर||
जिस हिम-शृंखला पर बैठा
कितनी सुंदर ये जननी है|
बहुत दिन हाँ बीत गये
बहुत सी बाते तुमसे करनी है||
कभी मुझे लूटने आता है
क्यो वीरानो का आगाज़ करे
यहाँ दूर-२ तक सूनापन
जैसे की तू नाराज़ लगे||
एक चिड़िया रहती है यहाँ
पास पेड़ की शाखो पर
ची ची पर उसकी खो जाता हूँ
जैसे सुध खोता था तेरी बातो पर||
मै सुलझाता हूँ उलझनो को
जैसे सुलझाता था तेरे बालो को
कभी फिसल जाता हूँ लेकिन
जैसे पानी छू गिरता गालो को||
कभी तुझे सोच कर हस लेता
कभी तुझे सोचकर रो लेता
एक तेरा दुपट्टा ले आया हूँ
उसको आंशूओ से धो लेता ||
एक शपथ ली थी आते हुए
सर्वोपरि राष्ट्रधर्म निभाऊँगा
मिलने का मन तो बहुत है
पर अभी नही आ पाऊँगा||