देहरादून : उत्तराखण्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अपने पसंद का मुख्यमंत्री बनाकर यह संकेत एक बार फिर दिया कि काम भले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को करना पड़े लेकिन इस सरकार का रिमोट तो दिल्ली से ही चलेगा। इस शपथ समारोह में खुद मोदी, अमित शाह के साथ-साथ बीजेपी के कई शीर्ष नेता आये थे।
एक दिन पहले देहरादून के परेड ग्राउंड में हुए शपथ समारोह में उस वक़्त सभी पत्रकारों में यह चर्चा चल पड़ी जब राज्यपाल ने शपथ के लिए हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, रेखा आर्य और सुबोध उनियाल जैसे नाम लिए। इन नेताओ की पहचान ये रही कि ये पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। उत्तराखंड में बीजेपी ने विपक्ष में रहते हुए इन्हें भ्रष्टाचारी कहकर कठघरे में खड़ा किया। यही नही उत्तराखंड में बीजेपी ने अपनी कैबिनेट में एक दागी अरविन्द पांडे को भी मंत्री मनाया है।
सीएम के दावेदार माने जा रहे सतपाल महाराज को भी मंत्री बनाया गया है जो कांग्रेस पार्टी से सीएम न पाए तो लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल हो गए। सीएम की रेस में उत्तराखंड के प्रमुख बीजेपी नेताओं की पहली पंक्ति में कभी त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम पहले कभी नही रहा इसलिए उनका सीएम बनना भुवनचंद्र खंडूरी, रमेश पोखरियाल, भगत सिंह कोश्यारी और सतपाल महाराज जैसे नेताओं को अंदर से परेशान जरूर कर रहा होगा।
गौर करें तो उत्तराखंड में नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, भुवनचंद्र खंडूरी, रमेश पोखरियाल और हरीश रावत तक अंदरूनी कलह से जूझते रहे। उत्तराखंड में इन तमाम नेताओं के बावजूद मोदी, अमित शाह की जोड़ी ने उनपर भरोसा दिखाया। हालाँकि उत्तराखंड के लोगों में इस बार सीएम से ज्यादा चर्चा मोदी अमित शाह की है जिससे यह साफ़ है कि उत्तराखंड को एक ऐसा सीएम भी मिला जो नागपुर और दिल्ली से रिमोट से चलेगा।
क्यों अलग है त्रिवेंद्र
उत्तराखंड के 9वे सीएम बने त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उत्तराखंड में डेढ़ दशक से मुख्यमंत्रियों की एक ऐसी परंपरा ख़त्म हुई जिसमें चुनाव जीतने वाले विधायक को कभी सीएम नही बनाया गया बल्कि नेताओं को सीएम की कुर्सी पर बैठाकर उपचुनाव कराये गए। रावत उत्तराखंड के पहले ऐसे सीएम हैं जिन्हें सरकार चलाने का मौका अनुकूल परिस्थितियों में मिलेगा। क्योंकि उनके सामने न उपचुनाव की चुनौती है और न ही बगावत का डर। मोदी, अमित उनके साथ हैं।